नेताजी का जन्मदिन था ओर नेताजी अपने घर मे अपने शहर मे थे!
पर हमारे यहां भी राजनीति का पलङा भारी था,
किसी फल वाले से पांच किलो केला खरिदे गये, ओर पांच आदमी को ये कहकर बुलाया गया कि जल्दी आओ कल के अखबार हम सभी की फोटो आयेगी!
*अब आजके जमाने मे अखबार मे फोटो आये तो लोग अपना सब काम छोङकर आते है।*
अब गरीब बच्चो की तलाश शुरू हुयी आखिरकार बस स्टेन्ड पर दो बच्चे भूख से बिलखते मिल भी गये!
*बच्चों ने बताया कि वो भुखे है उनको खाने के लिए कुछ चाहिए, पर अभी तक तो अखबार वाले भी नही आये तो फिर लोकल नेताजी केसें देंवें बच्चो को केले?*
दोनो बच्चों को मतलब भी नही था कि जन्मदिन किसका है?
उन्हे तो अपनी भूख को शान्त करना था।
एक घन्टें तक बच्चे अपनी भूख को दबाते रहे आखिर मे पत्रकार साहब आये ओर उन्होने बताया कि केसे सभी को खङा होना है पांच सात केले लेकर लोकल नेताजी खङे हो गये ओर बाकी सभी ने भी उन केलों को हाथ लगाया चार पांच क्लिक के बाद अखबार वाले साहब बोले ओके।
अब बच्चे खुश थे कि उनको कुछ खाने को तो मिला!
ओर इधर लोकल नेताजी के साथ वो लोग भी खुश दे जिन्होंने फोटो खिचंवाई!
अब कल के अखबार मे दानदाता के रूप मे उनकी फोटो आयेगी।
*एक किलो से भी कम केला देकर बने गये भामाशाह!*
ओर धन्य है मिडिया जो ऐसे लोगो के फोटो प्रकाशित करती है।
✍ *संजय जोशी*
*पारीक चौक, बीकानेर*
