बीकानेर, 29 अक्टूबर। जैनाचार्य जिन पीयूष सागर सूरीश्वर महाराज के सानिध्य में मंगलवार को ढढ्ढा चौक के प्रवचन पंडाल में भगवान महावीर के निर्वाण दिवस व धनतेरस के पर्व पर समोसारण की रचना कर परमात्मा की चौमुखी प्रतिमा की विशेष पूजा की गई।
भगवान महावीर की 16 प्रहर देशना का उत्तराध्ययन सूत्र के माध्यम से स्मरण करवाया गया।
जैनाचार्य जिन पीयूष सागर सूरीश्वरजी ने कोठारी भवन में धर्म चर्चा में कहा कि भगवान महावीर की देशना यानि संदेश जीव मात्र के कल्याण के लिए है। भगवान महावीर देशना पावापुरी तीर्थ में दी थी, पावापुरी के राजा हस्तिपाल ने अपने राज्य में भगवान को स्थान दिया। उनकी देशना से ही उत्तराध्ययन सूत्र का रचना हुई। उतराध्ययन सूत्र भगवान महावीर का दिया हुआ चरम, परम व मंगल वचन है। ऐसा कल्याणकारी आलोक है जिसको पाने के लिए समस्त देव तीन दिन तक रहे। प्रभु ने अपने प्रथम गणधर श्री गौतम स्वामी को निकट गांव में देव शर्मा ब्राह्मण के यहां उपदेश देने के लिए भेजा।
जैनाचार्य ने बताया कि भगवान महावीर की अमृतमयी वाणी को अत्यन्त भाव व श्रद्धा पूर्वक देव, राजाओं व श्रद्धालुओं ने सुना । प्रभु का निर्वाण का समय नजदीक जानकर अंतिम उपदेश की अखंड धारा चालू रखी, इस प्रकार प्रभु ने 16 प्रहर उतराध्ययन सूत्र का निरुपण करते हुए अमावस्या की रात के अंतिम प्रहर, स्वाति नक्षत्र में निर्वाण प्राप्त किया।
आचार्यश्री ने बताया कि श्री उतराध्ययन सूत्र को पंचम गणधर सुधर्मा स्वामी ने जीव मात्र के कल्याण के लिए भगवान के वरदान को अक्षर रूप में अक्षय किया। उतराध्ययन सूत्र में भगवान महावीर की अंतिम देशना को मुख्य शास्त्र के रूप में देखा व पढ़ा जाता है। यह इसमें आदर्श जीवन का निचोड़ है।
बीकानेर के मुनि संवेग रतन सागर महाराज व मुनिवृंद ने विधि विधान के साथ परमात्मा की चतुर्मुखी प्रतिमा की पूजा करवाई। आचार्यश्री की ओर से प्रस्तुति भगवान महावीर की अंतिम देशना को उतराध्ययन सूत्र के माध्यम से विस्तार से श्रावक-श्राविकाओं को समझाया। उन्होंने एक प्रसंग के माध्यम से बताया कि जो पाप से डरता है उसको पाप विलास की भावना नहीं होती। पाप से बचने वाला धर्म के मार्ग पर चलते हुए पुण्यार्जन करता है। छह काय के जीवों से जैना पूर्वक व्यवहार करता है तथा पंचाचार का पालन करता है। उन्होंने भगवान विष्णु को धर्म का स्वरूप बताते हुए कहा कि जहां विष्णु रहते है वहां लक्ष्मी रहती है। उन्होंने दस प्रकार के यति धर्म क्षमा, मान, आर्जव, मुक्ति, तप, संयम, सत्य, शुचि आचिन्य व ब्रह्मचर्य के बारे में विस्तार से जानकारी दी।