नोखा (रिपोर्ट – पवन सोनी )कस्बे के मोहनपुरा टंकी के पास स्थित ईश्वर राम बाबू लाल सोनी परिवार द्वारा श्रीमद् भागवत कथा का आयोजन किया जा रहा है।
मंगलवार को कथा के दूसरे दिन व्यासपीठ पर विराजमान भागवताचार्य धर्मेश जी महाराज ने भगवान कृष्ण, राजा परीक्षित के चरित्र के बारे में विस्तार से वर्णन किया।
इस अवसर पर के चरित्र के बारे में विस्तार से वर्णन किया इस अवसर पर विराजमान विराजमान धर्मेश जी महाराज ने श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए बताया कि द्वापर युग के अंत में कपट का खेल हुआ पांडवों का वनवास मिला लेकिन भगवान कृष्ण नाम का संबल उनके साथ था द्रोपदी पांच पांडवों के साथ वनवास में गई हुई थी।
दुर्योधन के यहां विदुर नाम का एक मंत्री था मंत्री विदुर ने दुर्योधन को समझाया कि पांडवों को भूमि देने को लेकर जब समझाया गया तो उसने बात नही मानी तो मंत्री विदुर जी मंत्री पद का त्याग कर विदुर जी घर चले गए।
मंत्री पद का त्याग कर विदुर जी घर चले गए ओर जब श्री भगवान कृष्ण के शांति दूत बनकर हस्तिनापुर आने का पता चला तो उन्होंने सोचा कि यदि मैं आज मंत्री होता तो भगवान के कृष्ण उनके नजदीक से दर्शन करता लेकिन अब आम नागरिक हो गया हूं तो अपनी पत्नी के साथ भगवान के दर्शन करने को लेकर उस सभा में पहुंचा जहां बहुत भारी भीड़ थी उन्होंने पैरों के अंगूठे से खड़े होकर भगवान के दर्शन किए भगवान श्री कृष्ण और विदुर के आपस में आंख मिली और भगवान कृष्ण ने विदुर जी को कहा कि आज का भोजन मैं आपके घर ही लूंगा।
दुर्योधन के नाना प्रकार के व्यंजन छोड़कर भगवान विदुर के घर भोजन करने पहुंचे उस समय विदुर जी की पत्नी को जब भगवान के आने का पता चला तो भगवान के प्रेम में इतने तल्लीन हो गई थी उसे भगवान को केला खिलाने की जगह छिलके उनके मुंह में देने लगी यह उनका वात्सल्य प्रेम था जो भगवान और भक्त में बना रहता है।
व्यासपीठ पर विराजमान भागवताचार्य धर्मेश जी महाराज ने कहा कि हमें भूख दो प्रकार की लगती है एक तो वह भूख लगती है जब हम पूरी तरह भूखे होते हैं और हमें पता नहीं चलता कि हम किसके हाथ का बनाया का भोजन खा रहे हैं और दूसरी भूख वह होती है जब हम पूरी तरह पेट भरा हुआ होता है और कोई विनम्रता से हमें भोजन करने का कहता है तो भी हम उसका कुछ ग्रहण करते हैं।
भागवत कथा सफल बनाने को लेकर पार्षद राधेश्याम लखोटिया, एम कैलाश, रिटायर्ड सब रजिस्टार शिवरतन सोनी, माणकचंद, श्याम सुंदर, नंदकिशोर, ओमप्रकाश, दीपचंद, भंवरलाल, दुलीचंद, रमेश कुमार, ओम प्रकाश, भागीरथ, राधेश्याम, कन्हैयालाल, केसरी चंद सहित अनेक कार्यकर्ता कथा को सफल बनाने को लेकर जुटे हुए हैं।