अभिनव राजस्थान पार्टी ने गोपालन व्यवस्था सुधारने के लिए दिया ज्ञापन
राजस्थान की गलियों, सड़कों और खेतों के बाहर भटकते बेसहारा गौ-वंश को लेकर आपको पत्र भेज रहे हैं. यह समस्या अब विकराल रूप धारण कर चुकी है और राजस्थान का का आमजन और किसान, सभी इससे पीड़ित हैं.
गाय-बछड़ा हमारी संस्कृति के महत्वपूर्ण अंग रहे हैं. पूजनीय रहे हैं. हमारे लोकदेवताओं ने इनको बचाने के लिए कई बलिदान दिए हैं. ऐसे जानवर का यूं बेसहारा भटकना समाज और सरकार के माथे पर कलंक है. गौ-पालन की व्यवस्था ठीक से नहीं होने से किसानों की अर्थव्यवस्था और बच्चों के स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ा है. साथ ही कस्बों, गाँवों में बेसहारा सांडों से बुजुर्ग, महिलाऐं और बच्चे असुरक्षित महसूस करते हैं. सांड के कारण मौत और घायल होने की ख़बरें अब आम हो गई हैं. सड़कों पर इनके कारण दुर्घटनाएँ भी बहुत होती हैं. इसके बावजूद राजस्थान सरकार का इस समस्या से आँख मूंदकर बैठना चिंताजनक है.
राजस्थान सरकार और समाज ने अभी तक गौशाला और नंदीशाला की व्यवस्था करने और गौवंश के नाम पर थोड़ा सा अतिरिक्त शुल्क (Cow Cess) लगाने तक ही सोचा है. इससे अस्थाई समाधान हुआ है और वह भी आधा अधूरा.
पर हमने इस समस्या पर शोध, भ्रमण, संवाद, अनुभव और अध्ययन के बाद पाया है कि इसका स्थाई समाधान एक ही है और वह है – गौवंश, गोचर और मनरेगा को जोड़ना. गोचर, गौवंश की अपने हक़ की जमीन है और उस पर चरना उसका मूलभूत अधिकार है, जो उसे सदियों से मिला हुआ है. राजस्थान में आज भी 17 लाख हेक्टेयर भूमि गोचर के नाम से दर्ज है. अगर सात लाख हेक्टेयर अधिकतम अतिक्रमण मान लें तो भी दस लाख हेक्टेयर भूमि कम नहीं होती है. इसके साथ हजारों हेक्टेयर व्यर्थ और पड़त भूमि भी इस काम आ सकती है.
राजस्थान की सरकार और समाज को मिलकर गोचर विकास कार्यक्रम को युद्धस्तर पर चलाया जाना चाहिए ताकि आने वाले दो वर्षों में हर तरफ हरे चारे के क्षेत्र विकसित हो सकें और गौवंश के लिए पर्याप्त चारे की व्यवस्था हो सके. लेकिन ध्यान रहे कि गोचर पर हो रखे अतिक्रमणों को छेड़ने का अभियान पहले नहीं चलाया जाए. जो गोचर भूमि अतिक्रमण से मुक्त है, सबसे पहले उसी पर काम शुरू किया जाए. यही व्यवहारिक समाधान है. वर्ना अफसर लोग अतिक्रमण के काम में लग जायेंगे और यह मुहीम यहीं रुक जायेगी. अतिक्रमण हटाने का विषय फिलहाल टाला जाए.
आपसे अनुरोध है कि गोपालन, पंचायती राज, ग्रामीण विकास और राजस्व विभाग में समन्वय स्थापित करके गोचर विकास और मनरेगा को एक अभियान के रूप में चलाया जाए ताकि भारत वर्ष में यह एक नजीर बन जाए. उदाहरण के तौर पर आप बीकानेर के पास स्थित सरे नाथानियाँ गोचर के विकास कार्यक्रम को देख सकते हैं, जो समाज के जागरूक लोगों ने शुरू कर रखी है.
मुख्यमंत्री जी,
गोचर विकास का काम नरेगा से हो जाने से निम्न फायदे होंगे
1. गौवंश का सम्मान बढ़ेगा.
2. गरीब और मध्यम वर्ग के परिवार भी गाय पाल सकेंगे.
3. पशुपालन के प्रति रुझान बढ़ने से राजस्थान की अर्थव्यवस्था को लाभ होगा.
4. जैविक खेती को प्रोत्साहन मिलेगी.
5. बच्चों के स्वास्थ्य में सुधर होगा.
6. सड़क और गली में सांडों से सुरक्षा मिलेगी.
एस, एस शर्मा, वरिष्ठ उपाध्यक्ष, डॉ एम पी बुढ़ानिया, उपाध्यक्ष, एडवोकट हनुमान शर्मा,महा सचिव, अंकुर शुक्ला,जिला अध्यक्ष, हरदयाल भादू, मनीष सोनी आदि ज्ञापन देने में शामिल रहे