29 अप्रैल, श्री गंगानगर, श्री गुरु अर्जुन दास सत्संग भवन के संस्थापक एवं श्री रूद्र हनुमान सेवा समिति के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री गुरु अर्जुन दास जी द्वारा सत्संग भवन में रविवार को 586 वा लंगर लगाया गया। लंगर मे पुलाव व लस्सी का वितरण किया गया। समिति द्वारा सेवाएं श्री गुरु अर्जुन दास, हुक्मी देवी, संगठन मंत्री सतपाल,कोर,अनुज मल्होत्रा,पडित नरेश शर्मा, आशा रानी, सुभाष छाबडा,एमडी सतीश, राजरानी, दिया, खुशी, निशा, अभिषेक, कमलजीत भुल्लर, नवनीत मलोट, मिकी ,सुमन, साहिल, देवेंद्र, संजु, यशपाल, पुनम, छिद्र पाल, जस्नकोर, कमलजीत सिंह, विडंग महेंद्र भटेजा, व अन्य सदस्यों द्वारा दी गई। सभी ने तन मन से सेवा दी।
सत्संग भवन में लगातार सेवाएं देने के लिए स्टैनफोड स्टडीज आइलेट एंड पी टी ई ईसटुड की औनर जस्न प्रीत कोर संरक्षण कमलजीत सिंह, वेडिंग सेवा दार दिनाराम को सम्मान प्रतीक भेंट कर व जस्न प्रीत कोर को चुनरी ओढ़ कर सम्मानित किया गया।
श्री गुरु अर्जुन दास जी द्वारा “कर्म करने में जीव स्वतंत्र है वा परतंत्र” इसका जवाब देते हुए कहा कि “अपने कर्त्तव्य कर्मों में स्वतंत्र और ईश्वर की व्यवस्था में परतंत्र है। जो स्वतंत्र अर्थात स्वाधीन है, वही कर्त्ता है। जिसके अधीन शरीर, प्राण, इन्द्रिय और अन्त:करणादि हो। जो स्वतंत्र न हो तो उसको पाप-पुण्य का फल प्राप्त कभी नहीं हो सकता। क्योंकि, जैसे भृत्य स्वामी और सेना सेनाध्यक्ष की आज्ञा अथवा प्रेरणा से युद्ध में अनेक पुरुषों को मारके अपराधी नहीं होते, “वैसे परमेश्वर की प्रेरणा और आधीनता से काम सिद्ध हो तो जीव को पाप वा पुण्य न लगे। उस फल का भागी प्रेरक परमेश्वर होवे।” स्वर्ग-नरक अर्थात् सुख-दु:ख की प्राप्ति भी परमेश्वर को होवे। जैसे किसी मनुष्य ने शस्त्र विशेष से किसी को मार डाला तो वही मारने वाला पकड़ा जाता है और वही दण्ड पाता है, शस्त्र नहीं। वैसे ही पराधीन जीव पाप-पुण्य का भागी नहीं हो सकता। “इसलिए अपने सामर्थ्यानुकूल कर्म करने में जीव स्वतंत्र, परंतु जब वह पाप कर चुकता है, तब ईश्वर की व्यवस्था में पराधीन होकर पाप के फल भोगता है। इसलिए कर्म करने में जीव स्वतंत्र और पाप के दुःख रूप फल भोगने में परतंत्र होता है।
राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री गुरु अर्जुन दास