*विविध विषयों और सार्थक व्यंजना से संचित हैं डॉ. जोशी के व्यंग्य, निबंध लेखन की चुनौती पर उतरे खरे: कुलपति आचार्य मनोज दीक्षित*
बीकानेर, 17 दिसंबर। महाराजा गंगासिंह विश्वविद्यालय के कुलपति आचार्य मनोज दीक्षित ने कहा कि डॉ. अजय जोशी के व्यंग्य विविध विषयों और सार्थक व्यंजना से संचित हैं। राजस्थानी में लिखे गए इनके निबंध युवाओं को जागरुक करते हुए उन्हें व्यक्तित्व निर्माण और आत्मावलोकन की सीख देते हैं।
कुलपति आचार्य मनोज दीक्षित ने मंगलवार को विश्वविद्यालय के कुलपति सचिवालय में वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. अजय जोशी के हिंदी व्यंग्य संग्रह ‘मत सुन जनता यह पैग़ाम’ तथा राजस्थानी निबंध संग्रह ‘न्यारा निरवाळा निबंध’ के विमोचन के दौरान यह उद्गार व्यक्त किए।
उन्होंने कहा कि डॉ. जोशी ने व्यंग्य के लिए विशिष्ट विषयों को चुनकर उन्हें रोचक शैली में प्रस्तुत किया है। यह समाज को नई दृष्टि से सोचने के लिए प्रेरित करते हैं। यह सारगर्भित होने के साथ संदेशपरक हैं। कुलपति ने कहा कि निबंध लेखन अत्यंत चुनौती पूर्ण कार्य है। यह लेखक की लेखकीय क्षमता की परीक्षा होती है। उन्होंने कहा कि ‘न्यारा निरवाळा निबंध’ में डॉ. जोशी ने इस चुनौती को स्वीकार करते हुए समाज को पठनीय साहित्य दिया है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार राजेन्द्र जोशी ने कहा कि असली व्यंग्य वही है, जो रोचक तरीके से संदेश दे। उन्होंने कहा कि डॉ. जोशी के व्यंग्य पाठक मन में उतर जाते हैं और अपनापन सा एहसास करवाते हैं। उन्होंने कहा कि जोशी के व्यंग्यों में दोहराव, विस्तार और अनावश्यक शब्दों के उपयोग जैसी कमियां नहीं हैं। जो कि इनकी सबसे बड़ी खूबी है। यह पाठक को बिना रुके पढ़ने के लिए प्रेरित करती है।
विशिष्ट अतिथि के रूप में बोलते हुए राजभाषा संपर्क अधिकारी हरिशंकर आचार्य ने कहा कि गद्य लेखन कैनवास बेहद विस्तृत है। इसमें व्यंग्य लेखन का स्थान सम्मानजनक है। अच्छा व्यंग्य लेखक बहुत कम शब्दों में अपना संदेश पाठक तक पहुंचा देता है। डॉ. जोशी इसमें सफल हुए रहे हैं। उन्होंने कहा कि निबंध संग्रह में विषय विविधता है और यह धर्म, आध्यात्मिक, व्यक्तित्व, साहित्य सांस्कृतिक दृष्टि और युवाओं को दिशा दिखाने वाले हैं।
डॉ. अजय जोशी ने दोनों पुस्तकों के विभिन्न अंशों का वाचन किया। उन्होंने अपनी साहित्यिक यात्रा तथा अब तक प्रकाशित विभिन्न पुस्तकों के बारे में जानकारी दी।
साहित्यकार राजाराम स्वर्णकार ने दोनों पुस्तकों पर पत्र वाचन करते हुए डॉ. जोशी के लेखकीय कर्म और व्यक्तित्व-कृतित्व के बारे में विस्तार से बताया। विष्णु शर्मा ने आभार व्यक्त किया।