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*नापाक पडौसी -दरिंदगी का दृश्य देख, मानवता भी शरमाती है…
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✍️*शिव भगवान शर्मा, सुजानगढ़* *नाईजीरिया प्रवासी*

देखो उस गीदड़ ने फिर से, आज हमें ललकारा है
सरहद पार से आकर सीधे, गाल पे थप्पड़ मारा है

वहशीपन की हद करते इसे, लाज जरा ना आती है
दरिंदगी का दृश्य देख, मानवता भी शरमाती है

आखिर कब तक जालिम के, जुल्मों को सहते रहेंगे हम
दुम सीधी होने की कब तक, राहें तकते रहेंगे हम

आखिर कब तक चुप बैठे, बस निंदा करते रहेंगे हम
आखिर कब तक वीरों को, शर्मिंदा करते रहेंगे हम

कहीं पे नक्सल, कहीं पे पत्थर, किसी ने थप्पड़ मारी है,
आज वतन की अस्मिता पर, दहशतगर्दी भारी है,

धरती की जन्नत में भी, नफरत की फसलें उग रही है
केसर की क्यारी में नित, जेहादी नसलें उग रही है

भारत तेरे टुकड़े होंगे, जैसे नारे लगते हैं
अफजल और याकूब जिन्हें, निर्दोष बेचारे लगते हैं

गर ऐसे ही चलता रहा तो, एक दिन ऐसा आएगा
अदना सा कोई भी पडौसी, हमको आंख दिखायेगा

सवा अरब हो कर भी हम क्यों, सब कुछ सहते रहते हैं
बंद कमरों में बैठे केवल, निंदा करते रहते हैं

देश के रखवालों आखिर युं, कब तक ऐसा चलता रहेगा
कब तक ऐसी पीड़ा सहता, वतन हमारा जलता रहेगा

कहो आज तक क्या कुत्ते की, दुम सीधी हो पाई है
जिसके दिल में खोट भरी हो, उसे अक्ल कब आई है

लातों का है भूत उसे, बातों से क्या समझाओगे
पीठ में वो खंजर घोंपेगा, गर जो गले लगाओगे

उस कायर को पाठ पढ़ाओ, निंदा करना बंद करो
खा खा चांटे बार बार, शर्मिंदा करना बंद करो

पलट वार हम कर सकते हैं, उसको ये समझाना होगा
दुष्टों को संहारने अर्जुन को, गांडीव उठाना होगा

दुश्मन का कलेजा थर्राये, ऐसी प्रचंड हुंकार भरो
बहुत हुई शांति की वार्ता, अब तो आर या पार करो

शक्ति का संधान करो अब, उसको सबक सिखादो तुम
हम क्या हैं क्या कर सकते हैं, पापी को दिखलादो तुम

आंखों में भर कर अंगारे, शेर की तरह दहाड़ो अब
चढ़ छाती पर दुश्मन की तुम, वहां तिरंगा गाड़ो अब ।।

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दिलीप गुप्ता

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