विश्व अस्थमा दिवस




बीकानेर, 6 मई। विश्व अस्थमा दिवस पर मंगलवार को जस्सूसर गेट के बाहर डॉ.श्याम अग्रवाल चिल्ड्रन अस्पताल व अनुसंधान केन्द्र में बच्चों के अस्थमा की निःशुल्क जांच की गई तथा रोगी व उनके अभिभावकों से संवाद करते हुए परामर्श दिया गया।
विश्व अस्थमा दिवस की थीम ’’ग्लोबल इनिशिएटिव फॉर अस्थमा (जी.आई.एन.ए) की ओर से प्रदत थीम ’’ श्वसन उपचार को सभी के लिए सुलभ बनाना, बच्चों में अस्थमा के कारण, उपचार पर बाल एवं शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. श्याम अग्रवाल ने विस्तृत जानकारी दी। उन्होंने बच्चों व उनके अभिभावकों को बच्चों में अस्थमा व एलर्जी रोग के बारे में पूछे गए सवालों का जवाब देते हुए उनकी शंकाओं का समाधान किया तथा बच्चों के स्वास्थ्य के प्रति सजग रहने, समय पर उपचार कराने, इनहेलर लेने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि इनहेलर दवाओं से अधिक सार्थक व उपयोगी उपचार है। इनहेलर के साइड इफेक्ट कम होते तथा रोगी को स्वस्थ होने बाद लेने की आवश्यकता नहीं रहती। धूल, धुआं, प्रदूषण, प्रोसेस्ड फूड और स्ट्रेस व एलर्जी होने वाले खाद्य पदार्थों से बचना चाहिए।
डॉ.श्याम अग्रवाल ने बताया कि अस्थमा एक ऐसी बीमारी है जो रोगी के फेफड़ों को प्रभावित करती है। अस्थमा के तीन प्रकार में ब्रोन्कोस्पाज्म में प्राणवायु श्वास के मार्ग के आस पास की मांसपेशियां सिकुड़ जाती है, श्वास के मार्ग को संकुचित बना देती है, वही मांसपेशियों में सूजन आने से श्वास फेफड़ों के बाहर व अंदर नहीं आने देता, रोगी के बलगम बनता है जो श्वास के मार्ग को अवरुद्ध करता है। रोगी के सांस में तकलीफ, घबराहट, चलने पर श्वास का फूलना सहित समस्याओं सामना करना पड़ता है।
उन्होंने बताया कि बच्चों में लगातार खांसी, निमोनिया, एलर्जी आदि के कारण अस्थमा पांच वर्ष की आयु से पहले शुरू होता है और शिशुओं और छोटे बच्चों में सकता है। प्रारंभिक अवस्था में इलाज करवाने से बच्चे बड़े होकर अस्थमा से बच सकते है। अस्थमा किसी को भी हो सकता है । एलर्जी वाले लोगों या तम्बाकू के धुएं के संपर्क में आने वाले लोगों में अस्थमा अधिक होने की संभावना रहती है। आनुवंशिक कारणों से भी बच्चों में अस्थमा या एलर्जी हो सकती है।
डॉ.श्याम अग्रवाल ने कहा कि अस्थमा की नियमित जांच योग्य चिकित्सक से करवायें तथा उपचार लें। उपचार में किसी तरह की कोताही जानलेवा भी साबित हो सकती है । उन्होंने बताया कि रोगियों व उनके अभिभावकों से कहा कि हर माह के दूसरे रविवार को बच्चों की अस्थमा की जांच होती है, रोग की आशंका होने पर नियमित जांच करवायें तथा उपचार लें। बच्चों को वायु प्रदूषण, धूल के करण, नमी वाली जगहों पर लगने वाली फफूंद, कीट तिलचटटे, चूहे और अन्य घरेलू कीट और पालतू जानवर, तेज रसायन व गंध, पत्थर की घिसाई, मिट्टी की खुदाई, सफाई के उत्पाद, बीकानेर में चलने वाली आंधियां भी अस्थमा का कारण बन सकती है। उन्होंने बच्चों के सीने में जकड़न, दर्द या दबाव, खांसी, सांस लेने में कठिनाई व घबराहट होने पर सजग रहकर चिकित्सक से इलाज करवाने, ईलाज को थोड़ी राहत मिलने पर बिना चिकित्सक की सलाह पर बंद नहीं का परामर्श दिया। इस अवसर पर अस्थमा के इलाज से ठीक हुए बालकों अपने अनुभव बताएं । नर्सिंग स्टॉफ कानसिंह भाटी ने 26 बच्चों के अस्थमा की जांच की ।