रिर्पोटर हनुमान प्रसाद सोनी सरदारशहर मजिस्ट्रेट आवास के सामने कुटिया में रहने वाले भगवती प्रसाद के निधन के बाद टैक्सी स्टैंड यूनियन ने हिंदू रीति रवाज से किया अंतिम संस्कार
मौत के बाद अपनों के कंधे का सहारा मिले, यह हर व्यक्ति की अंतिम इच्छा होती है, लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण तब होता है, जब इंसान को मौत के बाद भी अपनों का कंधा न मिलें। लेकिन कहते है जिनका कोई नहीं होता उनका ईश्वर होता है। यह हम कहते सुनते ओर पढ़ते आए हैं। सरदारशहर में यह सच होता हुआ दिखाई दिया हैं। दरअसल कच्चा बस स्टैंड के पास मजिस्ट्रेट की कोठी के सामने दशकों से कुटिया बनाकर अकेले रहने वाले 65 वर्षीय भगवती प्रसाद सोनी का शनिवार सुबह निधन हो गया। जिसके बाद टैक्सी स्टैंड पर गाड़ी चला कर अपना जीवन यापन करने वाले लोगों ने पूरे हिंदू रीति रिवाज के साथ अंतिम संस्कार कर मिसाल पेश की है। मजिस्ट्रेट आवास के सामने उनकी कुटिया पर पंडित द्वारा उनके अंतिम संस्कार की पूरे क्रियाक्रम को करवाया गया, उसके बाद शनिवार दोपहर को भगवती प्रसाद की कुटिया से उनकी अंतिम यात्रा कच्चा बस स्टैंड होते हुए अर्जुन क्लब अस्पताल के सामने स्थित मोक्षधाम पहुंची जहां पर हिंदू रीति रिवाज के अनुसार उनका अंतिम संस्कार किया गया और भगवती प्रसाद पंचतत्व में विलीन हो गए। भगवती प्रसाद की अंतिम यात्रा में सैकड़ों लोग शरीक हुए।
स्थानीय लोगों ने बताया कि भगवती प्रसाद सोनी की जन्मस्थली झुंझुनू जिले का बिसाऊ कस्बा है। बचपन से ही भगवती प्रसाद सरदारशहर में अपने ननिहाल में रहते थे लेकिन अचानक बुखार की वजह से उन्होंने अपने आंखों की रोशनी को दी और उसके बाद वह कभी देख नहीं पाए। पहले वह बस स्टैंड पर प्याऊ में पानी पिलाने का काम करते थे। उनके एक पैर में भारी सुजन था। गर्मी हो सर्दी हो या बरसात हो, वह मजिस्ट्रेट आवास के सामने बनी इस कुटिया में ही अपना जीवन यापन करते थे। स्थानीय लोग लगातार इनके खाने पीने की व्यवस्था करते आ रहे हैं। 2 दिन पूर्व इनका एक हाथ टूट गया जिसके बाद स्थानीय लोग इन्हें राजकीय अस्पताल लेकर गए और इलाज करवाया।
स्थानीय प्रदीप सारण ने बताया कि भगवती प्रसाद ह वो पिछले 40 सालों से यहां कुटिया बनाकर रहते थे। इनके परिवार में कोई नही था। मैं यहां पिछले 10 सालों से अपनी गाड़ी टैक्सी स्टैंड पर लगाता हूं और हमारा नाता है वो उनसे बन गया था। हम सभी टैक्सी स्टैंड वाले इन्हें चाय, खाने पीने की सारी व्यवस्थाएं करते थे और इनके साथ एक पारिवारिक रिश्ता हो गया था। सुबह इनका निधन हो गया जिसके बाद आज हम सभी टैक्सी स्टैंड वालों ने मिलकर इनके अंतिम संस्कार किया है। और जो अंतिम संस्कार में बेटे का दायित्व होता है वो मेने निभाया है मेने अपने हाथों से मुखाग्नि दी है।
टैक्सी स्टैंड पर रहने वाले लोगों ने बताया कि करीब 40 सालों से ज्यादा वक्त से भगवती प्रसाद सोनी यहां रह रहे थे और आसपास के लोग ही इनकी सारी व्यवस्थाएं करते थे। वही पवन कुमार सैनी ने बताया कि सुबह जब यह अपनी कुटिया से बाहर नहीं निकले तो टैक्सी स्टैंड के लोगों ने कुटिया के अंदर जाकर देखा तो भगवती है वह अचेत अवस्था में पड़े थे जिसके बाद उन्हें तुरंत एंबुलेंस की सहायता से राजकीय अस्पताल ले जाया गया जहां डॉक्टरों ने भगवती प्रसाद को मृत घोषित कर दिया। इसके बाद सभी टैक्सी स्टैंड के लोगों ने मिलकर इनका पूरे हिंदू रीति रिवाज के साथ अंतिम संस्कार करने का निर्णय लिया। जिसके बाद पूरे गाजे बाजे के साथ उनका अंतिम संस्कार किया गया है। इनके सभी जो दस्तावेज हैं पहचान पत्र, आधार कार्ड आदि मैंने ही बनवाए थे। यह रोज प्रतिदिन मजिस्ट्रेट की कोठी टैक्सी स्टैंड से चलकर रोडवेज बस स्टैंड तक एक लाठी के सहारे जाते थे चुकी भगवती प्रसाद देख नहीं पाते इसलिए एक लाठी के सारे की इनको जरूरत होती थी और हर किसी की आवाज को वह पहचानते थे।
टैक्सी ड्राइवर सिकंदर खान ने बताया कि प्रतिदिन हम इन्हें झोपड़ी से बाहर निकालकर धूप में बैठाया करते थे और उनके चाय पानी की व्यवस्था करते थे। इनसे हमारा एक पारिवारिक रिश्ता बन गया था। हर दिन इनसे टैक्सी ड्राइवर घंटो घंटो बातें किया करते थे। सिकंदर ने आगे बताया कि पिछले कई सालों से नरेंद्र भाट इनको खाना दोनों समय पहुंचाने का काम कर रहे थे। अब भगवती प्रसाद का निधन होने से सभी टैक्सी ड्राइवरों में शोक है।
वही फूल का गाड़ा लगाने वाले नरेंद्र भाट ने बताया कि पिछले कई सालों से मैं भगवती प्रसाद को जानता था और 4 सालों से ही वह रोज मेरे गाड़े के आगे आकर बैठा करते थे। उन्हें दिखाई नहीं देता था, धीरे-धीरे है वह अंदाजे से चलते थे। और मुझे वो आवाज से पहचानते थे। मैं उन्हें दोनों समय का खाना पहुंचाता था। देर रात को ही मैं उन्हें खाना खिला कर आया था। कुछ दिन से वो बीमार चल रही थे। लेकिन सुबह उनके निधन होने कि सूचना मिली।
वही सरदारशहर के टैक्सी स्टैंड पर टैक्सी चलाकर जीवन यापन करने वालों ने भगवती प्रसाद का अंतिम संस्कार कर मानवता की मिसाल पेश की है और यह साबित किया है कि आज भी हमारे मूल्य हैं वह जीवित है और यही सही मायनो में भारतीय संस्कृति है जो हमें औरों से अलग बनाती है। भगवती प्रसाद है वह अब पंचतत्व में विलीन हो चुके हैं अब भगवती प्रसाद सिर्फ टैक्सी स्टैंड वालों की यादों में बनकर ही रह जाएंगे।