अर्थ को नहीं, अर्थ की
गूंज को ढूंढ़ता है साहित्य: शीन काफ़ निज़ाम
नन्दकिशोर आचार्य ने अपने साहित्य सर्जन में शब्द के अर्थ मात्र को नहीं, अपितु शब्द के अर्थों की गूंज को ढूंढ़ने का श्रेष्ठ प्रयास करते है।
डॉ.आचार्य की इस साहित्य साधना का प्रभात त्रिपाठी ने साधनापूर्वक ही उनकी साहित्य यात्रा के विभिन्न कौशलों का बखूबी संकलन किया है।
ये उद्बोधन मुख्य अतिथि सुख्यात शाइर शीन काफ़ निज़ाम ने स्थानीय धरणीधर सभागार में व्यक्त किए।
अवसर था – सूर्य प्रकाशन मंदिर की सद्यप्रकाशित एवं प्रख्यात आलोचक प्रभात त्रिपाठी द्वारा संकलित कवि-चिंतक नन्दकिशोर आचार्य के सृजन पर एकाग्र कृति ‘शाश्वत समकालीन’ के लोकार्पण समारोह का।
स्थानीय धरणीधर सभागार में सुख्यात शाइर शीन काफ़ निज़ाम और देश के वरिष्ठ पत्रकार ओम थानवी के कर-कमलों से इस शाश्वत समकालीन कृति का लोकार्पण किया गया।
निजाम साहब ने अपने उद्बोधन में सद्यलोकार्पित कृति और नन्दकिशोर आचार्य की साहित्य साधना के संबंध में कहा कि डॉ.आचार्य का पहला प्रेम तो उर्दू भाषा ही रहा है। उनकी साहित्य जिज्ञासा में गालिब़ का गहरा प्रभाव स्पष्ट नजर आता है। उनकी रचनाओं में जिस प्रकार से सवाल की शाश्वतता बने रहना, सृजन की विशिष्ट सार्थकता हो अभिव्यक्त करती है, क्योंकि सवाल शाश्वत होता है मरता तो उत्तर है। रचना का रहस्य खुल जाना इतिहास बन जाता है और रचना का रहस्य खोलने की आवश्यकता बने रहना रचना का जीवन है। निजाम साहब ने कहा कि मैं डॉ.आचार्य के समग्र साहित्य सृजन का हासिल तो कविता है। इनकी सभी साहित्य विधाओं के मूल में कवि मन ही है। इसलिए डॉ.आचार्य मुक्कमल कवि हैं। इनका सृजन निष्कर्ष पैदा नहीं करता बल्कि पाठक के लिए निष्कर्ष की यात्रा का सहभागी बन जाता है। इनके लिए हकीकत की सार्थकता ख्याल बनने मेें है।अध्यक्षीय उद्बोधन के तहत ओम थानवी ने कहा कि डॉ. आचार्य की सृजन सक्रियता साहित्य जगत के लिए प्रेरणादायी है। त्रिपाठीजी ने केवल आलोचक बनकर नहीं वरन् किसी सहज पाठक के रूप में रचनाओं के आस्वाद की अभिव्यक्ति भी है। डॉ. आचार्य का अहिंसा कोश समाज को विचार के रूप में बहुत बड़ी देन है।
प्रारंभ में अध्येता ब्रजरतन जोशी ने लोकार्पित कृति अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि आलोचक प्रभात त्रिपाठी ने यह स्थापित किया है कि डॉ. नन्दकिशोर आचार्य का चिंतन साहित्य सृजन, विचार विश्व और ज्ञान विश्व की अमूल्य धरोहर है। इनका रचनाकर्म भाषा और भाव द्वैत को अद्वैत मेेे बदलता है। उनका सृजन साहित्य क्षेत्र से संबंधित मात्र की ही जानकारी नहीं अपितु प्रमुख समाज विज्ञानों की अद्यानुतन जानकारी का भी प्रमाणिक भंडार है।डॉ. नन्दकिशोर आचार्य ने अपने सृजन समग्र पर एकाग्र कृति के संकलन के लिए प्रभात त्रिपाठी और सूर्यप्रकाशन मंदिर के प्रति अपनी कृतज्ञता अर्पित की।कार्यक्रम में प्रारंभ में सूर्य प्रकाशन मंदिर की ओर से प्रशांत बिस्सा ने आगंतुकों का स्वागत किया। शहर के सुधि श्रोताओं एवं प्रबुद्धजन की सहभागिता ने आयोजन को सार्थकता प्रदान की। अंत में मधु आचार्य आशावादी ने आगंतुकांे के प्रति आभार अभिव्यक्त किया।कार्यक्रम का संचालन ज्योति प्रकाश रंगा ने किया।कार्यक्रम में नगर बीकानेर के विभिन्न क्षेत्रों की गणमान्य और प्रतिनिधि हस्तियां तो थी ही – साथ ही जोधपुर, सरदारशहर सहित राजस्थान के विभिन्न क्षेत्रों से आए साहित्यानुरागी भी शामिल थे।