बीकानेर। १५ अगस्त का दिन हर भारतीय के लिए गौरव का दिन है। इस दिन हम हमारे देश का 78 वां स्वतंत्रता दिवस मनाएगें। 15 अगस्त, स्वतंत्रता दिवस, इंडिपेंडेंस डे, चाहे जिस नाम से पुकार लो। लेकिन वो नाम पुकारते हुए अगर आपको भारत के शूरवीरों की याद न आए, तो दोबारा सोचना। क्योंकि आज हम जिस आजादी का जश्न मनाने वाले हैं, ये उन्हीं की बदौलत है ।
‘सारे जहां से अच्छा, हिन्दोस्तां हमारा,
हम बुलबुले हैं इसकी, ये गुलिस्तां हमारा’
ये पंक्तियां हमें याद दिलाती हैं कि हमारा देश कितना महान और अनेकताओं में एकता से भरा है । हमारे देश की संस्कृति, भाषा और परंपराएं हमें एक अनोखी पहचान देती है और इस पहचान के लिए हमने कितना लंबा संघर्ष किया है। अनेकों सेनानियों ने अपने जीवन का बलिदान देकर हमें स्वतंत्रता दिलाई। उनके साहस और बलिदान को शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। उनकी वीरता को नमन करते हुए हमें यह भी याद रखना चाहिए कि आजादी सिर्फ हमारा अधिकार नहीं । स्वतंत्रता का मतलब केवल विदेशी शासन से मुक्ति नहीं है । आजादी के साथ आती हैं जिम्मेदारियां, हर 15 अगस्त हमें फिर से याद दिलाता है कि हमें अपनी आत्मनिर्भरता, समानता और स्वतंत्रता बनाए रखने के लिए निरंतर प्रयासरत रहना होगा।
‘लहू वतन के शहीदों का रंग लाया है, उछल रहा है जमाने में नाम-ए-आजादी’ फिराक गोरखपुरी की इन पंक्तियों के जरिए हम उन सभी स्वतंत्रता सेनानियों को नमन करते हैं, जिन्होंने अपनी जान की परवाह किए बिना देश को आजाद कराने के लिए संघर्ष किया था। सर्वविदित है कि भारत की दासता कैसे और किस प्रकार हुई और उस दासता से मुक्ति के लिए किस प्रकार देश के लाखों नौजवानों ने अपने जिस्मो-जान को बलिदान किया। आजादी हासिल होना ना एक-दो दिन का परिणाम था और ना ही भारत जैसे विशाल देश ने अंग्रेजों की दासता रातों रात स्वीकार कर ली थी। इसके पीछे विदेशी ताकतों का बहुत बड़ा खेल हुआ था। व्यापार के बहाने देश में घुसे विदेशियों ने यहां के रहन-सहन,खान-पान और जीवन शैली को देखकर भांप लिया था कि यहां पर राज आसानी से किया जा सकता है। देश के करोड़ों भोले-भाले लोगों को सब्जबाग दिखाकर आसानी से काबू में लिया जा सकता है और ऐसा किया भी गया और हुआ भी, यहां यह बताना आवश्यक हो जाता है कि भारत आने वाला प्रथम यूरोपीय व्यक्ति वास्को-डी-गामा 1498 में भारत आया था। सही मायने में अंग्रेजों ने यह पहली नींव रखी। इसके बाद 1598 में लार्ड मेयर की अध्यक्षता में एक प्रस्ताव पारित किया गया। इस प्रस्ताव में भारत के साथ सीधे व्यापार करने हेतु एक कम्पनी बनाने की योजना तैयार की गई थी। इस कंपनी का प्रचलित नाम ईस्ट इण्डिया कम्पनी रखा गया । 31 दिसम्बर 1600 ईस्वी को इस कम्पनी को इंग्लैण्ड की महारानी एलिजाबेथ ने 15 वर्षों के लिए पूर्वी देशों के साथ व्यापार करने की अनुमति दी। 1615 में सर टोमस रो द्वारा मुगल बादशाह जहंांगीर से व्यपारिक रियायतें प्राप्त करे में सफलता प्राप्त कर ली गयी थी। भारतीयों के भोलेपन, दया, सहनशीलता एवं वसधैव कुटुंबकम की भावना का अंग्रेजों द्वारा नाजायज फायदा उठाकर व्यापार से आगे बढक़र राजनीतिक एवं सैनिक सता स्थापित कर ली गयी । इसमें लार्ड क्लाइव, लार्ड कार्नवालिस, लॉर्ड डलहौजी का अहम योगदान रहा। प्लासी के विश्वासघात के बाद बक्सर के युद्ध से अंगेज सता भारत पर स्थापित हो गयी । अंग्रेजो की नीतियों के परिणाम स्वरूप 1857 में हमारे देश में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम हुआ। इसमें नाना बेगम हजरत महल, तात्या टोपे, मंगल पाण्डे, रानी लक्ष्मीबाई, बहादुरशाह जफर आदि का महान योगदान रहा। अंग्रेज कमाण्डर ह्युरोज को यहां तक कहना पड़ा कि रानी लक्ष्मीबाई भारतीय क्रांतिकारियों में एकमात्र मर्द है। वहीं लार्ड कैनिंग ने कहा था अगर सिंधिया क्रांति में शामिल हो जाता तो हमें भारत से जाना पड़ता । इसके बाद की यह फेहरिस्त लंबी होती जाती है। जैसे-अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों, साम्प्रदायिकता सौहार्द बिगाडऩे वालों प्रयासों, सामाजिक समरसता बिगाडऩे के खिलाफ आवाज उठाने वालों में दादा भाई नौराजी, राजाराम मोहन राय, शिशिर कुमार घोष आदि थे शामिल थे। वहींं भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में भगतसिंह, सुखदेव, चन्द्रशेखर आजाद आदि का अहम योगदान रहा। सुभाष चन्द्रबोस ने ‘तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आजादी दूंगा’ के नारे ने युवाओं को सैन्य रूप से संगठित किया। वहीं भगत सिंह के इंकलाब जिंदाबाद एवं सरफरोसी की तमन्ना अब हमारे दिल में है से नई पीढ़ी तैयार की। इसके बाद जनवरी 1915 में महात्मा गांधी के भारत आगमन एवं आंदोलन का नेतृत्व सम्भालने के पश्चात नई उर्जा का संचार हुआ। गांधी जी ने चम्पारन आंदोलन, खेड़ा आंदोलन, अहमदाबाद आंदोलन के पश्चात कई राष्ट्रव्यापी आंदोलन किए। जिनमें असहयोग आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन के पश्चात अपना अंतिम आंदोलन भारत छोड़ो आंदोलन अगस्त 1942 में प्रारम्भ कर करो एवं मरो का नारा देकर अंतत: 15 अगस्त 194७ को भारत को आजाद करवाया। इसमें जवाहर लाल नेहरू, मौलान आजाद, उषा मेहता, कल्पना दत, प्रीतिलता वाडेकर, चापेकर बंधु, भगवती चरण मेहता का योगदान रहा।
आजादी की लड़ाई में शाहपुरा का बारहठ परिवार का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। जिनमें केसरी सिंह बारहठ, जवाहर सिंह बाहरठ, प्रतापसिंह बाहरठ प्रमुख थे । केसरीसिंह बाहरठ ने तो चेतावनी रा चुगंठिया लिखकर मेवाड़ के शासक फतेहकरण को अंग्रेज दरबार में भाग लेने तक से रोका था। प्रतापसिंह बाहरठ को बनारस काण्ड में गिरफ्तार किया गया और 1917 में 5 वर्ष के सश्रम करावास की सजा हुई । बरेली के केंद्रीय कारागार में उन्हें अमानवीय यातनाएं दी गई, ताकि उपने सहयोगियों का नाम पता किया जा सकें, किन्तु उन्होने किसी का नाम नहीं लिया। भारत सरकार के गुप्तचर निदेशक सर चार्ल्स क्लीवलैंड ने यातनाएं देकर प्रताप से कहा तुम्हारी माँ तुम्हारे लिए बहुत रोती है। इस पर प्रताप ने जबाव दिया लेकिन मैं सैकड़ो माताओं का रोने का कारण नहीं बन सकता, मेरी मां रोती है तो रोने दो, यह सुन क्लीवलैंड के मुंह से निकला मैने आज तक प्रताप सिंह जैसा युवक नहीं देखा ।
कविराजा बॉकीदास ने भरतपुर के संबंध में लिखा है
आछो गोरा हट जा, राज भरतपुर को रै हट जा । भरतपुर ग़ बॉको, किलो रे बॉको, गेरा हट जा ।
कविराजा बॉकीदास ने लिखा है –
आयो इंगरेज मुलक रै उपर, आहॅस लीधा खैचि उरां ।
धणियाँ मरे न दीधी धरती, धणियाँ उभो गई धरा । ,
इन कवियों में सूर्यमल्ल मिश्रण भी प्रमुख रहे। बीकानेर के अमरचंद बाठिया को अपना सम्पूर्ण धन दान करने के कारण फांसी की सजा दी गई। आजादी के दिवाने लिखने वाले सागरमल गोपा को जैसलमेर में जिंदा जला दिया गया। राजस्थान के प्रमुख स्वतंत्रता के दिवानों में अर्जुनलाल सेठी, बालमुकुंद बिस्सा, सरदार हरलाल सिंह, नानाभाई खांट, कालीबाई, भगवती बिश्नोई, जानकीदेवी बजाज, रतन शास्त्री, रमा देवी, किशारी देवी आदि रहे ।
इस प्रकार के संघर्षों के साथ अनगिणत एवं अनाम शहीदों के दम पर हमें 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्रता प्राप्त हुई। इसलिए आजादी का जश्न मनाते हुए हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि अभी भी देश की प्रगति के लिए कितना कुछ किया जाना बाकी है। यह सुनिश्चित करना बाकी है कि भारत का हर नागरिक स्वतंत्रता दिवस पर खुद को आजाद, सशक्त और सुरक्षित महसूस कर रहा हो। कोई भूखा न हो । हर व्यक्ति शिक्षित हो, सबके सिर पर छत हो । हर शरीर स्वस्थ हो ।
आइए.. हम एक राष्ट्र के रूप में हमारे सामने आने वाली चुनौतियों को भी स्वीकार करें । असमानता और अन्याय से लेकर भ्रष्टाचार और विभाजन तक, एकजुट होकर हर वो लड़ाई लड़ें जो हमारी आजादी के लिए खतरा हैं। वो आजादी, जिसके लिए आज भी लाखों जवान अपनी जान की बाजी लगाकर सरहद पर तैनात हैं ।
जय हिंद, जय भारत
(लेखक सामाजिक कार्यकर्ता और खाजूवाला कृषि उपज मंडी समिति के पूर्व निदेशक एवं अखिल भारतीय बिश्नोई महासभा के विशेष आमंत्रित सदस्य हैं)