Bikaner Live

पर्युषण महापर्व का सातवां दिवस ध्यान दिवस के रूप में मनाया गया।
soni

दिनांक : 7 सितंबर 2024, शनिवार
ध्यान दिवस

श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा गंगाशहर
ध्यान चिकित्सा का माध्यम है
श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा गंगाशहर के तत्वाधान में तेरापंथ भवन में साध्वी चरितार्थ प्रभा एवं साध्वी प्रांजल प्रभा के सान्निध्य में शनिवार कों पर्युषण महापर्व का सातवां दिवस ध्यान दिवस के रूप में मनाया गया।
साध्वी श्री चरितार्थ प्रभा ने कहा कि दुनिया में कुछ लोग जागते हुए भी सोते है और कुछ लोग सोते हुए भी जागते है। कुमार वर्धमान की भीतर की चेतना जागृत थी भोग और एश्वर्य उनके पीछे पीछे चल रहे थे। लेकिन भगवान की आत्मा सांसारिक सुखो को छोड़ कर साधु जीवन जीने को तड़प रही थी। उनका संकल्प था की जब तक माता पिता की जीवत अवस्था में है तब तक मैं दिक्षा नहीं लुंगा। वो किसी की आत्मा को दुख नहीं पहुंचाना चाहते थे। भगवान महावीर ने भाई और चाचा सुपाश्र्व से दीक्षा की अनुमति मांगी। भाई ने कहां कि अभी तो माता-पिता का देहान्त हुआ है 2 वर्ष घर में रहकर ही साधना करनी चाहिए। इन दो वर्षों में सत्य अहिंसा और ब्रह्मचर्य की साधना की। भगवान महावीर की साधना काल के प्रथम दिन से ही परिषह् का सामना करना पड़ना शुरू हो गया। ध्यान करने से शरीर की सभी कामनाएं शान्त हो जाती है ध्यान चिकित्सा का माध्यम है तो कर्म निर्जरा का भी महत्वपूर्ण साधन है। भगवान महावीर के ने खड़े खड़े पद्मासन मुद्रा में ध्यान किया। भगवान महावीर के परिषह् इतने आये जितने 23 तीर्थंकरों के मिलकर भी नहीं आये। छोटे से जीवन काल में भगवान महावीर ने अनेकों कष्ट सहे। उन्होंने अभय कि साधना का संकल्प लिया था। अन्तिम समय में हमारी मृत्यु कैसे हो ये हमें अभी से ध्यान देने कि जरूरत है हमें प्रति क्षण यह भावना रखनी चाहिए अन्तिम समय में समाधि पूर्वक संथारा संलेखना पूर्वक मृत्यु को प्राप्त करें।
इस अवसर पर साध्वी प्रांजल प्रभा ने आगमवाणी से शुरूआत करते हुए कहा कि 84 लाख जीव योनि में भटकाव करके मनुष्य भव मिला है इसमें प्रमाद न करके आत्मा का कल्याण कर राग-द्वेष को छोड़े बिना मोक्ष नहीं मिल सकता। अजरमरा पद प्राप्त कराने वाला साधन है निष्काम भाव से साधना। तत्व के प्रति सच्ची श्रद्धा ही सम्यक्त्व है। क्षण भर भी सम्यक्त्व का स्पर्श हो जाए तो मोक्ष का मार्ग प्रशस्त हो जाता है। अजर अमर अजर एक स्थान है जहां बुढापा नहीं आता और ना मृत्यु आती है वो स्थान है मोक्ष, इसे सिद्धशिला भी कहते है। आपके द्वारा तीर्थंकरो के प्रति कि जाने वाली भक्ति हमें सम्यक्तव को प्राप्त करा देती है मोक्ष हमारी मंजिल है और नींव है हमारा सम्यक्त्व। देव गुरू और धर्म के प्रति पूर्ण श्रद्धा के भाव होने से आप सम्यक्त्वी है एक बार सम्यकत्व का स्र्पश हो जाये तो मोक्ष निश्चित है। हमारी मोक्ष की टिकट पक्की हो गई यदि सम्यक्तत्व आ गया हो। सम्यक्तव के अभाव में किया गया तप, त्याग, ध्यान आदि अकाम निर्जरा होगी। मोक्ष नहीं होगा। हमें कर्म रूपी मोती को सम्यक्त्व रूपी हंस के मुख में रखना आ गया तो मोक्ष का मार्ग निश्चित है। तेरापंथ के चतुर्थ आचार्य जयाचार्य जी ने कहां कि सम्यक्तत्व के बिना आपने चारित्र का पालन किया एवं 9 पूर्वी का ज्ञान करने के बाद भी ज्ञान अज्ञान कहलायेगा। मोक्ष का मार्ग नहीं होगा। सम्यक्तत्व की एक सामायिक भी मासखमण की तपस्या से ज्यादा प्रभावी है ज्यादा महत्व होता है। चितांमणी कामधेनु कल्पवृक्ष आपको भौतिक सुख देने वाले हो सकते है। सम्यक्तत्व आपकों इन सब से उपर मोक्ष का सुख देने वाला है।
साध्वी आगम प्रभा जी ने कहा कि ध्यान साधना बहुत मुश्किल है। ध्यान का अर्थ अपने भीतर जाना अपने अन्दर देखना होता है। हमारा यही लक्ष्य होना चाहिए कि अपने आपको राग द्वेष मुक्त करके आत्मा का कल्याण करना है। आर्त – रोद्र- धर्म – शुक्ल ध्यान के 4 प्रकार के ध्यान होते है। आर्त और रोद्र ध्यान अशुभ ध्यान। धर्म और शुक्ल ध्यान शुभ ध्यान होते है। आज तपस्वीयों का मेला लगा हुआ था छोटे छोटे बच्चों से लेकर महिलाओं व पुरूषों ने 7,8,9,10,11,15 आदि तपस्याओं के पच्चखान किये। पूरा तेरापंथ भवन का वातावरण तपोमय सा लग रहा था।

Picture of Prakash Samsukha

Prakash Samsukha

खबर

http://

Related Post

द्वितीय मुख्यमंत्री रोजगार उत्सव मंगलवार कोजिले के नवचयनित कार्मिकों से वीडियो कांफ्रेंस के जरिए मुख्यमंत्री करेंगे संवादकरेंगे विकास कार्यों का भी लोकार्पण एवं शिलान्यास

Read More »
error: Content is protected !!