बीकानेर खारड़ा
धर्मचंद सारस्वत
चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को गणगौर उत्सव मनाया जाता है। इसे ईसर-गौर भी कहते हैं। ईसर यानी भगवान शिव और गौर यानी देवी पार्वती। इस पर्व में शिव-पार्वती की पूजा ही विशेष रूप से की जाती है। आज 25 मार्च 2023, शनिवार की दोपहर को यह पर्व मनाया जाएगा। वैसे तो ये राजस्थान का लोक उत्सव है, लेकिन मध्यप्रदेश और गुजरात में भी अब ये पर्व मनाया जाने लगा है। गणगौर व्रत कुंवारी लड़कियां मनचाहे पति के लिए और विवाहित महिलाएं पति की सुख-समृद्धि के लिए रखती हैं।
खारड़ा के पंडित जगदीश सारस्वत ने बताया की चैत्र मास
की चतुर्थी को गणगौर का त्योहार मनाया जाता हैं
हालाकि कुछ जगहों पर तृतीय तिथि को भी इस पर्व का मनाया जाता हैं
गणगौर तीज कुंवारी और विवाहित महिलाएं अपने सौभाग्य और अच्छे वर की कामना करने के लिए करती हैं। इस दिन माता पार्वती और भगवान शंकर की आराधना की जाती है।
कुंवारी, विवाहित और नवविवाहित महिलाएं इस दिन नदी, तालाब या शुद्ध स्वच्छ शीतल सरोवर पर जाकर गीत गाती हैं और गणगौर को विसर्जित करती हैं। यह व्रत विवाहित महिलाएं पति से सात जन्मों का साथ, स्नेह, सम्मान और सौभाग्य पाने के लिए करती हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार माता गवरजा यानि मां पार्वती होली के दूसरे दिन अपने पीहर आती हैं और आठ दिनों के बाद इसर जी यानि भगवान शिव उन्हें वापस लेने के लिए आते हैं। इसलिए यह त्योहार होली की प्रतिपदा से आरंभ होता है। इस दिन से सुहागिन स्त्रियां और कुंवारी कन्याएं मिट्टी के शिव जी यानि गण एवं माता पार्वती यानि गौर बनाकर उनका प्रतिदिन पूजन करती हैं। इसके बाद चैत्र शुक्ल तृतीया को गणगौर यानि शिव पार्वती की विदाई की जाती है। जिसे गणगौर तीज कहा जाता है