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भगवान की कथा को अमृत कहा गया है– भाई संतोष सागर महाराज श्रीडूंगरगढ़
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भगवान की कथा को अमृत कहा गया है– भाई संतोष सागर महाराज श्रीडूंगरगढ़ बीकानेर। तोलाराम मारू

  • आशीर्वाद बालाजी मंदिर प्रांगण में श्री जगदीश प्रसाद गुरावा परिवार द्वारा आयोजित भागवत कथा के छठे दिवस की कथा सुनाते हुए युवा संत संतोष सागर महाराज ने कहा कि भागवत के दसम स्कंध के पांच अध्याय भागवत का हृदय है, इसे रास पंचाध्यायी के नाम से पुकारा जाता है।
    भागवत का प्राण गोपी गीत सुनाते हुए आपने कहा कि इस गीत में हमारा ध्यान, भाव, साधना सब छुपा हुआ है। गोपी गीत 19 श्लोकों में हैं। यह विरह का सबसे बड़ा गीत है।
    आपने कहा कि भगवान ने रास के दौरान मधुर मुरली सुनाई थी। भगवान की कथा ही मुरली की धुन है। यह धुन आत्म तत्व से सुनाई देती है। गोपियां भगवान के विरह में रोती हैं। उनके आंसू दुनिया की सबसे महंगी वस्तु है। वे आंसू भगवत प्रेम में ही निकलने चाहिए। गोपियां भगवान से केवल प्रेम चाहती हैं।
    महाराज ने गोपी गीत सुनाने से पहले कहा कि कभी भूलकर भी भगवान के भक्त का अपराध न करें। अहंकार भगवान की खुराक है। कथा के प्रारंभ में मंच संचालन करते हुए डाॅ चेतन स्वामी ने कहा कि भगवान के प्रति अनुरक्ति जगाने का काम भगवद् कथाएं करती हैं।
    आज की कथा के उपरांत विश्वकर्मा कौशल बोर्ड के अध्यक्ष रामगोपाल सुथार, पर्यावरण मित्र श्री ताराचंदजी इन्दौरिया, सामाजिक कार्यकर्ता श्री गोपाल राठी, नरेश गौतम, सुधीर गुप्ता का सम्मान किया गया। दयाल राजेन्द्र योगेश विनोद गुरावा ने बताया कि कल भागवत कथा का विश्राम होगा। मंदिर की मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा परसों होगी।
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Prakash Samsukha

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