बीकानेर के रेलवे ऑडिटोरियम में परिवर्तन संस्था का छठवां जिला अधिवेशन संपन्न हुवा जिसका संचालन संस्था के जिलाध्यक्ष त्रिलोक बारासा ने किया तथा अध्यक्षता केंद्रीय अध्यक्ष वेदवीर सिंह आदिवासी ने की।
इस अवसर पर संस्था प्रमुख चौ0 विनोद अम्बेडकर की बतौर मुख्य अतिथि गरीमामई उपस्तिथि रही इसके अलावा संस्था के सलाहकार डॉ0 रविन्द्र पंवार, रिटायर्ड अधिकारी नेमीचंद लोहिया एवं कु0 कांता बारासा विशिष्ठ अथिति के तौर पर उपस्थित रहे। अधिवेशन का प्रारंभ भीम गर्जना गीत से हुवा और समापन संस्था के समूहगान से। जिला मीडिया प्रभारी विनोद शागिर्द ने अधिवेशन आए सभी लोगों का धन्यवाद ज्ञापन किया।
मुख्य अतिथि संस्था प्रमुख चौ0 विनोद अम्बेडकर ने अपने प्रबोधन में कहाकि बाबा साहेब आंबेडकर ने भारत के संविधान में समता स्वतंत्रता बंधुत्व की भावना के साथ जीवन में सबको योग्यता के आधार पर तरक्की करने के समान अवसर मिले इसकी व्यवस्था की थी लेकिन संविधान लागू होने से आज तक ऐसा होता हुवा दिखाई नही पड़ा। आज भी दलितों के साथ प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष जातिगत आधार पर भेदभाव पूर्व की तरह ही जारी है, एट्रोसिटी निरंतर हो रही है,मासूम बच्चियों के साथ बलात्कार हो रहे है, आज भी अंतिम पायदान की जातियों की हकमारी बदस्तूर जारी है। क्यों ? क्योंकि संविधान के लागू होने से लेकर आज तक जिन लोगों के हाथ में सत्ता आई उनकी पर्टिया और चेहरे तो बदले किंतु इनका व्यवहार हमारे साथ नही बदला। इसमें कोई दोषी नहीं बल्कि दलित समाज के ही उन लोगों की बहुत बड़ी भूमिका रही है जो आरक्षण के बलबूते विधायक सांसद मंत्री और प्रशासनिक सेवा में गए। वहां जाकर वो समाज को भूल अपनी व्यक्तिगत स्वार्थ सिद्धी में लीन हो गए जबकि उन्हें मिले ये पद प्रतिष्ठा उनकी अपनी काबिलियत से नही बल्कि बाबा साहेब के दिए गए प्रतिनिधित्व के अधिकार से प्राप्त हुवे। ऐसे चरण चाटुकारों की वजह से ही संविधान और लोकतंत्र हमारे लिए नाममात्र साबित हुवा। बाबा साहेब के बाद मान्यवर कांशीराम के दौर में जरूर थोड़ी राहत मिली लेकिन व्यक्तिगत स्वार्थ और अति महत्वाकांक्षा के चलते दलित समाज के इन आरक्षण की पैदाइश नेताओ और सरकारी नोकरी में गए लोगों ने बाबा साहेब के मिशन और उनकी विरासत को बर्बाद कर दिया और सत्ताधीशों के तलचे चाटने लगे जिससे कुछ लोगों को व्यक्तिगत लाभ तो मिला लेकिन वो समाज की वोटों और उनके मान सम्मान को बेचने की एवज में। बाबा साहेब ने कहा था कि सामाजिक क्रांति से पहले राजनैतिक क्रान्ति के कोई मायने नहीं। परंतु इसकी किसे पड़ी है आज जिसे देखो वो राजनीति में जाकर बहुत जल्दी विधायक सांसद मंत्री बनने की फिराक में है फिर चाहे उनकी इस सनक की जो भी कीमत समाज को क्यों न चुकानी पड़े ? हमे गैरो से क्या गिला, अपनो की रहबरी से सिकवा है। ये सब तब तक बदस्तूर जारी रहेगा तब तक बाबा साहेब आंबेडकर की सामाजिक क्रांति के आंदोलन को दलित समाज की हर जाति तक नही पहुंचा दिया जाए तथा विचारधारा से एकजुट नही कर लिया जाए। इसलिए मैं हमेशा कहता हूं तुम किसी से कुछ मत मांगो न न्याय ना हक तुम तो बस मेरी इतनी सी बात मानो की सामाजिक एकजुटता पैदा करो,शिक्षा प्रशासन और सत्ता में भागीदारी में तुम्हे बोनस में दिलाऊंगा तब किसी की हिम्मत तुम्हारी तरफ आंख उठाकर देखने की नही होगी न कोई हकमारी कर सकेगा।
अधिवेशन में मुख्यरूप से सोहन चावरिया, सूरज डागर, अजय विश्वाश, श्याम निर्मोही, श्यामलाल बारासा, गोगराज जावा, दीनदयाल, डॉ. बी. आर. जेदिया, राजकुमार हटीला, आनंदमल चौहान, पार्षद नन्दलाल जावा, ओमप्रकाश जी लोहिया, बलवेश जी चांवरिया, एल0आर बिवान, रियाजुदीन, कु0 दीक्षा दीक्षा बारासा,भंवर नायक, मनोज चौहान, विनोद चांवरिया, प्रभुदयाल बारासा, प्रकाश चांगरा, शिवलाल तेजी, कुलदीप चाँवरिया आदि उपस्थित रहे