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“गौ प्रेम का पर्याय”‘श्री लाल बावा’
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“गौ प्रेम का पर्याय”
‘श्री लाल बावा’
सर्व काम दुधे गावः सर्व तीर्थ समन्विता:। सर्व देवमयी गावः स्मृता गोप्य क्षमस्व में।।
अर्थात गौ माता सभी कामनाओं को पूर्ण करने वाली है सभी तीर्थं का सार है और सभी देवताओं का निवास है,है गौ माता मेरे द्वारा की गई किसी भी भूल को क्षमा करें। पुष्टि प्रणेता आचार्य चरण महाप्रभु श्रीमद् वल्लभाचार्य जी द्वारा वर्णित यह श्लोक स्वयं में गौ माता के महत्व को वर्णित करने के लिए पर्याप्त है।भोलेपन से भरे नेत्रों से जब एक गौ किसी वैष्णव की ओर देखती है तो बरबस ही इस बात का एहसास होता है कि आखिर क्यों प्रभु की प्रिय गौ माता में ही सभी देवताओं का वास है प्रभु के अति प्रिय वल्लभ कुल की हर पीढ़ी में अपने पद की उपमा गोस्वामी अर्थात गौ के स्वामी को चरितार्थ करते हुए गौ माता के लिए विशेष प्रेम की परंपरा रही है और इसी परंपरा का शुभ प्रभाव दिखता है मात्र पांच वर्ष के पुष्टि प्रणेता श्री वल्लभ के उन्नीस वीं पीढ़ी के गो.ति.108 श्री राकेश जी (श्री इंद्रदमन जी) महाराज श्री के पौत्र एवं गो. चि.105 श्री विशाल जी (श्री भूपेश कुमार जी) के सुपुत्र देदीप्यमान सूर्य की तरह ओजस्वी,चंद्रमुखी राजकुमार गो.चि 105 श्री लाल बावा(श्री अधिराज जी)में आज जहां पाश्चात्य संस्कृति से ओतप्रोत हमारे भारतीय समाज के बच्चे आधुनिकता में खोए अपनी सनातन संस्कृति एवं संस्कारों से दूर हो रहे हैं तो वही जब श्री लाल बावा किसी बछड़े या गाय की तरफ अपनी मासूमियत भरे नेत्रों से देखते हैं तो लगता है जैसे स्वयं गोपाल ही अपनी गईया की ओर प्रेम भरी नजरों से देख रहे हो।श्री गुसाई जी से लेकर नित्य लीलास्थ श्री गोवर्धन लाल जी महाराज,श्री गोविंद लाल जी महाराज श्री एवं वर्तमान श्रीमान तिलकायत श्री, श्री विशाल बावा तक सभी के द्वारा गौ सेवा एवं गौ संरक्षण के लिए विशेष कार्य किए गए हैं और इसी कड़ी में श्री लाल बावा का गौ प्रेम स्वयं श्रीजी के आशीर्वाद एवं गुरुजनों के पुण्य का फल है, श्री लाल बावा के गौ प्रेम की पराकाष्ठा उनके जीवन में हर जगह चाहे उनके वस्त्र हो, खेल के प्रकार हो,खिलौने हो यहां तक कि जब वे स्कूल जाते हैं तब भी उनके साथ उनके बैग में गौ माता का एक खिलौना अवश्य रहता है जिसमें स्कूल की तरफ से उनको उनके गऊ प्रेम को देखते हुए विशेष परमिशन दी गई हे।श्री लाल बावा के वस्त्र अलंकार में भी हर जगह उनके गायों से चित्रित वस्त्र विशेष रूप से पहनते हुए दिखाई देते हैं,उनके खेल में उनकी विशेष रुचि गौ माता को मोर पट्टिका से सजाना उनको खिलाना, स्कूल जाने से पूर्व गौ माता की सेवा में गौ माता को आहार खिलाना यह सब क्रियाएं उनके अंदर रची बसी है। गौ माता से गिरे रहने वाले लाल बावा जब नाथद्वारा गौशाला में आते हैं तो जिस उम्र में बच्चे गायों के पास जाने से भी डरते हैं उस उम्र में लाल बावा गायों के साथ अठखेलियाँ करतें हैं जो देखते ही बनती है जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण हाल ही में दीपावली के अवसर पर श्री नाथद्वारा में श्रीजी प्रभु के कानजगाई की परंपरा एवं श्री गोवर्धन पूजा में देखने को मिली जहां श्री लाल बावा गायों के सम्मुख उन पर हाथ फेरते और उनको प्रेम भरी निगाहों से खिलाते दिखे।चाहे प्रभु के सम्मुख धराई गौ माता हो या गोवर्धन पूजा में पधारे नंद वंश की गौ माता लाल बावा का यह गौ प्रेम बरबस ही सभी का ध्यान अपनी और खींचता है आज के इस मोबाइल की लत में डूबे बच्चों के बीच लाल बावा सभी के लिए एक उदाहरण स्थापित कर रहे हैं और सनातन संस्कृति जिसमें विशेष रूप से गौ माता के प्रति स्नेह प्रेम और उसके संरक्षण जिसमें वल्लभ कुल के गौ प्रेम की इस पवित्र परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं,जो अनुकरणीय है।

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Prakash Samsukha

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