
दादा दत्त सूरी’’ व सिद्धि तप की आराधना शुरू
अरिहंत परमात्मा का पद सर्वोंपरि -गणिवर्य श्री मेहुल प्रभ सागर
बीकानेर,16 जुलाई। गच्छाधिपति आचार्य प्रवर श्री जिन मणि प्रभ सूरीश्वरजी महाराज के आज्ञानुवर्ती गणिवर्य श्री मेहुल प्रभ सागर म.सा., मंथन प्रभ सागर, बाल मुनि मीत प्रभ सागर, बीकानेर की साध्वी दीपमाला श्रीजी व शंखनिधि के सान्निध्य में बुधवार सिद्धि तप शुरू हुआ।
अखिल भारतीय खरतरगच्छ युवा परिषद की बीकानेर इकाई के अध्यक्ष अनिल सुराणा ने बताया कि मंगलवार से शुरू हुए ’’दादा दत्त सूरी’’ तप के तपस्वी महावीर भवन से मुनि व साध्वीवृंद के नेतृत्व में गाजे बाजे के साथ दादा गुरुदेव जिनदत सूरी की प्रतिमा को ढढ्ढा कोटड़ी में ले जाकर स्थापित की। वहां दादा गुरुदेव की प्रतिमा को सुश्रावक गुलाबचंद, फतेहचंद, शर्मिला खजांची परिवार ने मंदिर में प्रवेश, विराजमान, वासक्षेप पूजा व पुष्प पूजा के बाद स्थापित करवाया। मुनि मंथन प्रभ सागर के नेतृत्व में तपस्वियों ने ’’ऊं हृीं श्रीं जिनदत्त सूरि सद्गुरुभ्यो हृीं नमः’’ की 9 माला फेरी तथा नौ बार दादा गुरुदेव के इकतीसे का पाठ, 9 लोग्स्स का कायोत्सर्ग, 9 स्वास्तिक, 9 खमासणा पदक्षिणा के साथ (पद-दादा दत्त नमो सदा, चादर का अभिषेक, देव वंदन किया। तपस्वियों की दादा गुरुदेव की तपस्या के दौरान साधना, आराधना व भक्ति का क्रम 15 अगस्त 2025 तक चलेगा। तप के दौरान साधक एक दिन (एकांतर) उपवास व एक दिन बियासना (दो वक्त आहार) रहेगा। तपस्वियों के तथा बाहर से आने वाले यात्रियों के आहार की चातुर्मास के दौरान व्यवस्था महावीर भवन में उदासर के किशन लाल, सौभाग्यवती देवी कोठारी परिवार ने की है।

सिद्धि तप आत्मा को पवित्र करने वाला-गणिवर्य मेहुल प्रभ सागर
गणिवर्य मेहुल प्रभ सागर म.सा. ने बुधवार को प्रवचन में सिद्धि तप की महिमा बताई। उन्होंने कहा कि 45 दिवसीय सिद्धि तप आत्मा को प्रभु की ओर ले जाने, आत्मा को शुद्ध व निर्मल बनाने का तप है। सिद्धि तप यानि सिद्धि की ओर से जाने वाला तप। इस तप से आत्मा की गहराइयों में छुपे हुए काम,क्रोध, लोभ, मोह आदि विकार नष्ट होते है। तपस्वियों के भीतर से एक दिव्य प्रभा प्रकट होती है जो कहती है कि मैं केवल दे नहीं आत्मा व चेतन सत्ता हूं। भगवान महावीर ने 12 साल और 6 महीने तक तपस्या कर के केवल ज्ञान को प्राप्त किया, वैसे ही सिद्धि तप, साधक को आत्म साक्षात्कार तक ले जाता है।
उन्होंने कहा कि जब कोई आत्मा अरिहंत बन जाती है, तो उसे केवलज्ञान प्राप्त यानी उसे संपूर्ण चराचर जगत का ज्ञान हो जाता है। अरिहंत परमात्मा बिना किसी भेदभाव संसार के कल्याण के लिए होते हैं। उनका जीवन शांति, करुणा और अहिंसा की मिसाल होता है। उन्होने कहा कि हर आत्मामें अपारशक्ति है, बसउसे जागृत करना होता है। हम भी अपने भीतर की कमियों व गलतियों को पहचाने तािा उन्हें दूर करें तथा जीवन की शुद्धता की ओर आगे बढ़े । जैन धर्म का सबसे पहला वंदन ’’णमो अरिहंताणम्’ इसलिए है क्योंकि अरिहंत परमात्मा की आत्मा सच्ची विजय का प्रतीक है।