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*सेवा से सिद्धि तक कालजयी श्री तुलसी*
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✍️आलेख.. मोहन भन्साली

राजस्थान, लाडनूं की पावन धरा पर श्री झूमरमल जी खट्टेड़ कुल के घर आंगन में कार्तिक शुक्ला 2 वि. स.1971 को मातुश्री वन्दना जी की कुक्षि से नवजात शिशु ने जन्म लिया। गर्भावस्था में मां वन्दना ने दो स्वप्नें देखें जिसमें एक *”उतरता हुआ विमान”और दूसरा “कुंकुम के पगलिए!”*
भैक्षव शासन के अष्टमाचार्य श्री कालुगणी ने मात्र 9 वर्षीय बालक तुलसी को पौष कृष्णा 5 वि. स.1982 को लाडनूं में संयम रत्न प्रदान किया। सूत्र के ज्ञाता मुनिश्री रंगलाल जी ने बाल मुनि श्री तुलसी को सूत्र के सतरंगी रंगों से रंग दिया। 22 वर्षीय युवा मनीषी ने गंगापुर में भाद्रपद शुक्ला 9 वि. स.1993 को नवमें आचार्य पद को सुशोभित किया। आचार्य श्री तुलसी ने पहला चातुर्मास बीकानेर किया। वहां पर प्रसंग वंश आपने असाधारण सांप्रदायिक तनाव को सौहार्द में बदलकर महाराजा गंगासिंह जी को अपनी बौद्धिक क्षमताओं से अभिभूत किया।
पुरा देश आजादी की खुशियां मना रहा था। संविधान विशेषज्ञ राष्ट्र निर्माण का बुनियादी ढांचा तैयार करने में व्यस्त था।दूसरी ओर रेगिस्तानी कस्बे में एक दार्शनिक संत सोच रहा था कि आजाद भारत के बुनियादी ढांचे में नैतिकता की प्रतिष्ठा कैसे हो? एक ऐसी विचारधारा हो! जो कि वर्ण, जाति, लिंग, भेद, भाषा और संप्रदाय से मुक्त मानवता के उत्थान में सर्वदा कल्याणकारी हो।चिंतन के गहरे सागर से मिला अमूल्य मोती! और प्रकाशमय प्रज्ज्वलित दीप! जो कि अद्वितीय प्रकाशपुंज के रूप में परिणित हुआ जिसका नाम था *अणुव्रत आंदोलन* जिसकी आज भी सार्वभौमिक अपेक्षा है।
साधना के शिखर पुरुष आचार्य श्री तुलसी ने 1 मार्च 1949, सरदारशहर में अणुव्रत आंदोलन का शंखनाद किया। एक अनुपम विचार क्रांति के सूत्रधार ने अपनी धवल सेना के साथ दिल्ली की ओर प्रस्थान किया। जिसका एक ही सोपान था कि चरित्रवान राष्ट्र का निर्माण हो! नवनिर्माण में अणुव्रत की उपयोगिता हो।
देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद बाबू अणुव्रत के सिद्धांतों से प्रभावित हुए और उन्होंने प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को अणुव्रत से अवगत कराया। आपा-धापी के दौर में लेने वालों की कतार में राष्ट्र निर्माण के लिए नेहरू जी को कुछ देने पहुंचे आचार्य श्री तुलसी! नेहरू जी अत्यंत प्रभावित हुए और आचार्य श्री का अभिवादन किया और अणुव्रत की महत्ता को गहराई से समझा। अणुव्रत की विशालता को राष्ट्र की आधारशिला में महत्वपूर्ण माना। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में नेहरू जी ने अणुव्रत आंदोलन को अति आवश्यक ही नहीं माना अपितु अणुव्रत आंदोलन के स्वयं समर्थक भी बनें। मानवीय मूल्यों की प्रतिष्ठा और राष्ट्रीय हित में सारगर्भित नैतिक मूल्यों की स्थापना में “अणुव्रत के चिराग” को पाकर पंडित नेहरू गद्-गद् हुए।
अनुशासन के मंत्रदाता श्रीमद् जयाचार्य प्रवर के “निर्वाण शताब्दी समारोह” पर आयोजित “अनुशासन वर्ष” के दौरान दिल्ली के चांदनी चौक में अणुव्रत अनुशास्ता आचार्य श्री तुलसी के सान्निध्य में *”मौन जुलूस”* का भव्य आयोजन हुआ। जिसमें धवल वाहिनी और विशाल जनसमूह का समायोजन हुआ।
ढ़ुंढ़-ढुंढाला, मंजला कद, गौर वर्ण, श्वेत वस्त्र, मूंह पर पट्टी, युवा संत, माधुर्य वाणी, अप्रत्याशित आकर्षक व्यक्तित्व एवं सबको सम्मोहित करने वाला तेज आभामंडल और अहिंसा व अणुव्रत का प्रचारक जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के आचार्य श्री तुलसी का परिचय विश्व स्तर पर मीडिया में प्रकाशित हुआ और अहिंसा जगत में सत्य, अहिंसा, अणुव्रत और संयम की गूंज चहुंओर गूंजायमान हुई।
अणुव्रत की विशालता और मानवीय मूल्यों में होने वाले बदलावों से व्यक्तित्व निर्माण की कार्यशैली को समझने हेतु आचार्य श्री तुलसी की सन्निधि में राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर के जिज्ञासु आए और तर्क के सागर में अणुव्रत की गहनता को समझकर तृप्त हुए ।
*अणुव्रत वह प्रकाशपुंज है जो सार्वभौमिक अनैतिकता के अंधकारमय वातावरण को प्रकाशमय बनाने में सक्षम है।
*अणुव्रत आंदोलन का मुख्य उद्देश्य मानवीय मूल्यों के आधार पर आदर्श समाज की संरचना करना।
*अणुव्रत उदार दृष्टिकोण का विकास करता है।
*अणुव्रत ज्वलंत समस्याओं का समाधान देता है।
*अणुव्रत असाम्प्रदायिक धर्म का प्रतिबोध देता है।
*अणुव्रत सहिष्णुता और समन्वय का संस्कार देता है।
*अणुव्रत कलापूर्ण जीवन जीने की कला सिखाता है।
*अणुव्रत प्रामाणिकता के संस्कारों को प्रस्फुटित करता है।
*अणुव्रत भौतिकवाद की चकाचौंध से भटकते राही को सन्मार्ग की और ले जाता है।
*अणुव्रत प्रतिशोध की ज्वाला से उभारता है और शांति की राह दिखलाता है।
*अणुव्रत का उद्धघोष “संयम: खलु जीवनम्!” अर्थात संयम ही जीवन है।
*समय प्रबंधन में “निज पर शासन: फिर अनुशासन!” का प्रेरणास्रोत उद्धघोष है।
युगपुरुष श्री तुलसी ने गांव, शहर, ढाणी और संसद के गलियारे तक चरैवेति चरैवेति मंत्र को आत्मसात कर चरित्रवान राष्ट्र निर्माण के उद्देश्य से चारों दिशाओं में लगभग एक लाख किलोमीटर की पदयात्राओं में अणुव्रत, नैतिकता, सहिष्णुता और सद्भावना सौहार्द व व्यसन मुक्ति की अलख जगाई। जन-जन ने आपकी झोली में अपनी बुराइयों की भेंट देकर धन्य धन्य हुआ। हमारा जन-प्रतिनिधि सत्तापक्ष और प्रतिपक्ष के नये नाम की सम्मान सुचक पहचान को पाकर कृतज्ञ हुआ।
दूरदृष्टा समाज सुधारक श्री तुलसी ने भावी पीढ़ी के नवनिर्माण में नौनिहालों के सर्वांगीण विकास हेतु बाल्यकाल से ही पुस्तकीय ज्ञान के साथ-साथ भावनात्मक शिक्षा पर बल दिया। इसी श्रृंखला में शिक्षा जगत को अणुव्रत साधना का प्रकल्प प्रेक्षाध्यान और जीवन विज्ञान का अनुपम *”अवदान”* दिया। प्रांतीय स्तर पर जीवन विज्ञान के पाठ्यक्रम को अनेक प्रांतीय भाषाओं में पढ़ाया जा रहा है।
संगीत के जादूगर, कवि सम्राट, साहित्यकार, श्री तुलसी ने *”आगम का संपादन”* किया और हिन्दी, अंग्रेजी, संस्कृत, प्राकृत व राजस्थानी आदि भाषाओं में सत्य,अहिंसा व अणुव्रत आदि जीवन रुपांतरित आध्यात्मिक साहित्यों से साहित्य जगत का भंडारण भर दिया।
ऊर्जावान युवा आचार्य श्री तुलसी की धर्मशासना में विकासशील यात्रा के ऐतिहासिक 25 वर्षों की सम्पन्नता पर *”धवल समारोह”* को दो चरणों में आयोजित किया गया।जिसमें से पहला चरण दिनांक 19.09.1961 को श्रीमद् जयाचार्य की उर्वरा भूमि बीदासर में और दूसरा चरण गंगाशहर तपोभूमि के “भन्साली प्रांगण” में दिनांक 01.03.1962 को माननीय राष्ट्रपति डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के मुख्य आतिथ्य में मनाया गया। यह विशिष्ट वर्ष अणुव्रत की गौरव गाथाओं में गंगाशहर के इतिहास का अमिट आलेख बन गया।
निर्माण के नये क्षितिज और जीवन मू्ल्य संरक्षण के महानायक आचार्य श्री तुलसी का सेवाभावी भाईजी महाराज मुनिश्री चम्पा लाल जी ने दिनांक 02.02.1971 को चादर ओढ़ाकर व हाथ से बनी हुई सूत की माला पहनाकर चतुर्विध धर्मसंघ की ओर से *”युगप्रधान आचार्य पद”* से अलंकृत किया।
दिनांक 12.02.1986 को उदयपुर में महामहिम राष्ट्रपति श्री ज्ञानी जैल सिंह जी के द्वारा *”भारत ज्योति”* अलंकरण दिया गया। दिनांक 31.10.1992 को दिल्ली में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री पी वी नरसिम्हा राव जी के द्वारा *”इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय एकता पुरस्कार”* दिया गया। दिनांक 14.06.1993 को जैन विश्व भारती लाडनूं में *”वाक्पति डी लिट”* पुरस्कार से सम्मानित किया गया। दिनांक 29.07.1995 को जैन विश्व भारती लाडनूं में *”हकीम खां सूरी सम्मान”* से नवाजा गया। श्री तुलसी स्वयं सर्जनकर्ता आचार्य थे। आपको दिए जाने वाले सम्मान पत्र स्वयं आपसे सम्मानित होता गया।
आचार्य श्री तुलसी के जीवन के छः दशक अनेक विशेषणों से अभिनन्दनीय बन गया। अभिनन्दन की मंगल कामनाओं में दिनांक 15.12.1974 अणुव्रत भवन,नई दिल्ली में महामहिम राष्ट्रपति श्री फखरूद्दीन अली अहमद के मुख्य आतिथ्य में *”षष्ठिपूर्ति समारोह”* का भव्य आयोजन किया गया। अणुव्रत की महत्ता में सेवा से सिद्धि तक का संकल्प गतिमान हुआ।
आपकी अनुशासना का कीर्तिमान 50 साल कालजयी बना। अमृत पुरुष के व्यक्तित्व और कर्तृत्व की अभिवन्दना में *”अमृत महोत्सव”* का भव्य आयोजन पांच चरणों में गंगापुर दिनांक 28.04.1985 को, आमेट दिनांक 22-24.09.1985 को, उदयपुर दिनांक 10-14.02.1988 को, राजसमन्द दिनांक 17-23.04.1986 को और लाडनूं दिनांक 12-18.09.1986 को आयोजित किया गया। कार्यक्रमों में महामहिम राष्ट्रपति श्रीमान ज्ञानी जैल सिंह, पूर्व प्रधानमंत्री श्री मोरारजी देसाई, पूर्व प्रधानमंत्री श्री गुलज़ारीलाल नन्दा, श्री शिवराज जी पाटिल आदि साहित्यकार श्री जैनेन्द्र जैन और सामाजिक और धार्मिक संस्थाओं के बौद्धिक व प्रबुद्ध वर्ग आदि गणमान्यजनों की उपस्थिति में नैतिक क्रांति के संवाहक श्री तुलसी ने असांप्रदायिक धर्म पर प्रकाश डाला और विकास की पताका फहराते हुए “नया संकल्प और नया सामर्थ्य” के उन्नयन में विकासोन्मुख व्याख्यान दिया।
मानवता के भविष्य दृष्टा ने राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राज्यपाल, मुख्यमंत्री, राजनीतिज्ञ आदि मंत्री और जनप्रतिनिधियों से नैतिक क्रांति का आह्वान किया। वर्तमानकालीन समस्याएं जैसे जातीयता, प्रांतीयता, अस्पृश्यता, साम्प्रदायिकता आदि मानसिक महत्वाकांक्षी दुर्बलताओं की ज्वलंत समस्याओं पर अणुव्रत के छोटे छोटे संकल्पों से हृदय परिवर्तन और अनेकांत दर्शन का विकल्प दिया। राष्ट्रीय स्तर पर ग़रीबी, महंगाई और भुखमरी के समाधान में अनुशासन और शम सम और श्रम का मंत्र प्रदान किया।
आचार्य श्री तुलसी अध्यात्म परंपरा के सूत्रधार थे। मानवीय मूल्यों के संरक्षक थे। संकल्प सिद्धी की अकल्पनीय पदयात्राओं में दिगंबर जैनाचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज व बौद्धधर्म गुरु दलाई-लामा से आत्मीय मिलन हुआ। वृद्धा में महात्मा गांधी के महान् विचारक श्री विनोबा भावे जी से आध्यात्मिक वार्तालाप हुआ। सर्वोदय नेता श्री शिवाजी भावे, श्री जयप्रकाश जी नारायण व नोबेल पुरस्कार से सम्मानित मदर टेरेसा तथा सीमान्त गांधी खान अब्दुल गफ्फार खां और इतिहासकार , साहित्यकार, गायककार, पर्यावरण विद् एवं शिक्षाविद्, पत्रकार आदि चिंतनशील गणमान्यजनों ने बदलते युग में विकास के नए आयामों पर अणुव्रत की प्रासंगिकता पर चिंतन मनन हुआ।
समय प्रबंधन और कार्य संयोजन के मंत्रदाता आचार्य श्री तुलसी शंकराचार्यों के साथ *विश्व हिन्दू धर्म सम्मेलन* में पधारे। अजमेर की ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती दरगाह के दीवान साहब, आर्य समाज के संत, नाथ संप्रदाय के संत और संत श्री कृपालसिंह जी आदि हिन्दू ,मुस्लिम, सिख, ईसाई आदि धर्मावलंबी गुरुजनों, संतों व जैनाचार्यों से आध्यात्मिक मिलन व धार्मिक चर्चाएं की। वर्तमान परिदृश्य में अणुव्रत की महत्ता पर अनवरत विचार-विमर्श चलता रहा जिसका सकारात्मक परिणाम मिला।
*शास्वत धर्म के पुजारी और सत्य अहिंसा के सारथी श्री तुलसी ने *”अशांत विश्व को शांति का संदेश दिया।”* यह संदेश महात्मा गांधी के पास पहुंचा। गांधीजी ने संदेश की गंभीरता को देखकर प्रभावित हुए और कहा कि ऐसे मार्मिक संदेश में देरी क्यों ?
प्रसंग वंश यहां पर यह उल्लेख करना प्रासंगिक होगा कि गुरुदेव की विशेष अनुकम्पा से मुझे आध्यात्म साधना केन्द्र, छतरपुर, दिल्ली के विशाल प्रांगण में उपरोक्त दुर्लभ चित्रों की त्रिदिवसीय चित्र प्रदर्शनी लगाने का अवसर मिला। और परम श्रद्धेय आचार्य प्रवर के कर कमलों से “भव्य चित्र प्रदर्शनी” का लोकार्पण हुआ।
*स्वप्नदृष्टा पुरुषार्थी संत श्री तुलसी ने आर्द्धप्रवर्तक आर्य श्री भिक्षु की लुप्त समाधी स्थल का शोधन किया। सन् 1982 वि. स. 2039 निर्वाणोत्सव पर आचार्य श्री के सान्निध्य में महामहिम राष्ट्रपति श्री ज्ञानी जैल सिंह जी के कर कमलों द्वारा “आचार्य श्री भिक्षु समाधी संस्थान” सिरियारी का लोकार्पण किया। अदृश्य शक्तियों का चमत्कारी तीर्थ स्थल मानवता को समर्पित किया।
श्रद्धेय आचार्य श्री तुलसी को केवल सफलताऐं ही नहीं मिली अपितु जगह-जगह पर अकल्पनीय विरोध का भी सामना करना पड़ा। किन्तु आपने “असाधारण विरोध को भी विनोद माना!” और प्रतिकूलताओं को अनूकूलता में बदल दिया।
अणुव्रत अनुशास्ता श्री तुलसी ने रुढ़िवादी परंपराओं पर कुठाराघात कर घर की चारदीवारी में कैद अबला नारी का उत्थान किया और राजनगर में *”नया मोड़”* का अवदान दिया। जिसके फलस्वरूप आज अणुव्रत की सौम्य सौरभ को लेकर हमारी आह्लादित महिलाएं खुले आसमां में ऊंची उड़ान भरने को आतुर हैं।
*शांतिदूत युगप्रधान श्रद्धेय आचार्य श्री तुलसी ने धधकते पंजाब के अंगारों में अहिंसा की बरसात कर सिख संत श्री हरचन्द सिंह लोंगेवाला, पंजाब के मुख्यमंत्री श्री सुरजीत सिंह बरनाला और तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी के साथ *”शांति समझौता”* कराकर त्राहि-त्राहि के दूषित वातावरण में पुनः शांत सुधारस का पावन पथ प्रशस्त किया और अणुव्रत व अहिंसा का संदेश दिया।
*ज्योतिपुंज आचार्य श्री तुलसी के लिए आचार्य श्री भिक्षु हृदयहार थें और आचार्य श्री कालुगणी कण्ठमणी थें। आपकी कल्पना शक्ति अद्भूत थी। आपने आचार्य काल के 58 वर्षों में कल्पना शक्ति के कारण तेरापंथ धर्मसंघ को गगनचुंबी ऊंचाईयां प्रदान कर मानवता को आलोकित आलोकपुंज दिया।*
अहंकार और प्रलोभन से मुक्त, इतिहास के परिवर्तन कार आचार्य श्री तुलसी ने पदलोलुपता के युग में माघ शुक्ला 7 वि. स. 2050 को सुजानगढ़ में आचार्य पद का विसर्जन कर नये युग का शुभारंभ किया। दिनांक 05.02.1995 को देश की राजधानी दिल्ली में आयोजित *”आचार्य पदाभिषेक समारोह”* में आचार्य श्री तुलसी ने आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी का आध्यात्मिक अभिषेक करते हुए नौ आचार्यों की शक्तियां, तेजस्विता, पराक्रमशीलता और तपस्विता का संप्रेषण किया।
महान् दार्शनिक आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी ने चतुर्विध धर्मसंघ की ओर से अपने गुरु को *”गणाधिपती गुरुदेव श्री तुलसी”* के नामकरण से सुशोभित कर आह्लादित मानव को गजानंद श्री गणेश का रूप प्रदान किया।
आपने मुनिश्री नथमल जी की प्रज्ञा का उद्धारोहण कर 21वीं सदी के महान् दार्शनिक महाप्रज्ञ से मानवता को उपकृत किया। लेखनी की कलाकार, कुशल नेतृत्व और वक्ता, साध्वी समाज की सेवा और सुश्रुषा में लीन ममता की देवी साध्वी श्री प्रमुखा जी को “महाश्रमणी पद” से अलंकृत किया। विनयवान मुनिश्री मुदित कुमार जी को दक्षता की कसौटी पर कसा और शिक्षा और दीक्षा में निपुण बनाकर “महाश्रमण” से अलंकृत किया और तेरापंथ धर्मसंघ को “अध्यात्म का धूर्वतारा” दिया।
*आचार्य श्री तुलसी ने अपने शासनकाल में लगभग 700 साधु साध्वियों और समण श्रेणी को दीक्षित करने का इतिहास रचकर “संघीय संपदाओं की श्रीवृद्धि में अद्वितीय काम किया।”*
घर घर नैतिक संस्कारों को प्रवाहित करने के उद्देश्य से *”अणुव्रत परिवार”* की परिकल्पना से अनेकानेक परिवारों को अणुव्रती परिवार बनाया। अर्जन और विसर्जन की महत्ता को बतलाते हुए विसर्जन का बोधपाठ दिया। सेवा और संगठन का दायित्व बोध कराया और अनेक संस्थाओं को विकसित किया। समारोह और महोत्सव की गरिमा पर ध्यान आकर्षित करते हुए भिक्षु चरमहोत्सव, विकास महोत्सव, निर्वाण शताब्दी समारोह जैसे अनेक संघीय आयोजनों का श्रीगणेश किया। सेवाभावी साधु साध्वियां और श्रावक एवं श्राविकाओं व संस्थाओं का मूल्यांकन करते हुए अलंकरण व संबोधन से अलंकृत किया। पत्र पत्रिकाएं और समाचार बुलेटिन विज्ञप्ति का प्रकाशन शुरू किया।
*युग प्रवर्तक लौ पुरुष श्री तुलसी ने सात समुंदर पार और देश के सुदूर प्रदेशों में प्रवासित मानव जाति के कल्याण हेतु समण श्रेणी और उपासक श्रेणी का उद्भव किया। दीक्षार्थी मुमुक्षुओं की परिपक्वता हेतु *”पारमार्थिक शिक्षण संस्थान”* का निर्माण किया। सांसारिक जीवन में मांगलिक अवसरों को आडंबरों से मुक्त और संयमित जैन संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए *”जैन संस्कार विधि”* का निर्माण किया और संस्कारकों को प्रशिक्षित किया। वर्तमान में अणुव्रत अनुशास्ता आचार्य श्री महाश्रमणजी के निर्देशन में विश्व का कोना-कोना महावीर वाणी से आत्म स्नान कर रहा है।
राष्ट्र संत आचार्य श्री तुलसी ने हर पल निर्माण का सोपान संजोया और उत्थान किया। जन-जन को आदर्श जीवन जीने की प्ररेणा दी। महानायक *”मानवता का मसीहा”* कहलाये।
*मानवता का मसीहा आचार्य श्री तुलसी द्वारा प्रतिपादित मानवीय मूल्यों के संरक्षण में दूरगामी सोच के परिणामस्वरूप आज जैन विश्व भारती, लाडनूं नैतिकता और सद्भावना के सद् संस्कारो का संचार करने वाली “कामधेनु”! मानवता के लिए वरदान साबित हो रही है।
आजादी के बाद चलने वाले आन्दोलनों में से आज तक के नैतिकता के सक्रिय आन्दोलन है, तो वह आंदोलन है:- आप द्वारा प्रतिपादित अणुव्रत आंदोलन! अणुव्रत हमें सुख और समृद्धि के लिए दूसरों की संपदाओं को हनन किए बिना ही जीवन व्यवहार में प्रामाणिकता की प्राथमिकता को बनाए रखने की प्रेरणा देता है और संयमित जीवन-शैली से सुखमय जीवन जीने की अद्भुत शक्ति प्रदान करता है। अणुव्रत का *”अद्वितीय प्रकाशपुंज”* हमें चरित्रनिष्ठ पीढ़ी का नव निर्माता बनाता है।
मैंने दिनांक 02.05.1997 को वृद्धजन भ्रमण पथ बीकानेर में दो महान् विभूतियों के मिलन का अविस्मरणीय फोटो कैमरे में कैद किया। जो कि आज धर्मसंघ का इतिहास बन चुका है।
दिनांक 22.06.1997 को भोर बेला में मैंने गुरुदेव श्री की योग मुद्राओं का विडियो व फोटो बनाया था। सायंकालीन अर्हंत वन्दना के समय श्री बलराम जाखड़ और बीकानेर के ज्योतिष लाल बाबा आदि गणमान्यजन तेरापंथ भवन पहुंचे। वहां से मैं आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी की आज्ञानुसार उन्हें एकांत प्रवास स्थल, बोथरा भवन गुरुदेव की सन्निधि में ले गया। वहां पर अर्हंत वन्दना के पश्चात् वार्तालाप के दौरान उन्होंने गुरुदेव को बताया कि मैं किसी पार्टी में आया था। सोचा पहले गुरुदेव का दर्शन लाभ ले लूं। पुज्य गुरुदेव ने फ़रमाया अच्छा किया, नहीं तो क्या जाने मन में रह जाती? किन्तु आपके भावार्थ को कौन कैसे समझता? हालांकि इस तरह से पुनर्ज्ञान के संकेत आपने लाडनूं से अब तक कितनी बार दे चुके थे।
गण का भण्डार भरुंगा के संकल्प को सिद्ध करते हुए धर्मधुरंधर, तीर्थंकर के प्रतिनिधि गणाधिपती गुरुदेव श्री तुलसी ने अंतिम पड़ाव में भी पुरुषार्थ की पराकाष्ठा को लिख दिया। दिनांक 23.06.1997 को बोथरा भवन, गंगाशहर से तेरापंथ भवन, गंगाशहर पैदल पधारे और कुछ ही क्षणों के विश्राम के बाद धर्मसंघ की सारणा वारणा में लीन रहते हुए श्री पदम जी पटावरी के पत्र को पढ़ने के लिए बाल मुनि आलोक से चश्मा मांगा और उसी पल अकस्मात् काल के गर्भ में समा गए।
आध्यात्मिकता के महासूर्य की निश्छल काया की अमृतमय आंखें, कानों की गज़ब छटाएं, हाथों और पैरों की विलक्षण रेखाओं सहित हथेली और पगथली आदि के अमूल्य चित्रों की फोटो ग्राफी करने का और आचार्य प्रवर के श्रीचरणों में फोटो समर्पित करने का मुझे सौभाग्य मिला। जो कि आज संघ के अमूर्त चित्र! दीर्घा के लिए संग्रहणीय बन गए हैं। इस ऐतिहासिक संग्रह में मेरे आग्रह पर सहयोग करते हुए कृपावान मुनिश्री सुव्रत कुमार जी ने कुछ समय के लिए श्रावकों को कमरे से बाहर भेजा।
महाप्रयाण की खबर चंद ही पलों में देश-विदेश के लाखों श्रद्धालुओं को शुन्य के कटघरे में खड़ा कर दिया और सभी सुनकर हस्तप्रभ रह गए कि ये क्या हुआ? कैसे हुआ? किन्तु यह शास्वत सत्य था। होनी को कौन टाल सकता है। देखते ही देखते महाप्रयाण यात्रा में राजस्थान के मुख्यमंत्री श्री भैरुसिंह शेखावत, दिल्ली के मुख्यमंत्री श्री मदन लाल खुराना आदि आंखों में आंसू भरे लाखों श्रद्धालुओं का जनसैलाब उमड़ पड़ा और छोटी काशी बीकानेर का उपनगर, गंगाशहर का यह पावन धाम *”तीर्थ स्थल”* बन गया।
!!श्रृद्धावनत::अणुव्रत प्रेमी!!
आलेख रचनाकार ::
मोहनलाल भन्साली “कलाकार”
गंगाशहर, बीकानेर! राजस्थान
दिनांक::04.06.2025
मो.7734968551
सादर जय जिनेन्द्र। मेरे द्वारा रचित आलेख में अल्पज्ञता वंश कोई त्रुटी हुई हो तो मैं चतुर्विध धर्मसंघ और अणुव्रत परिवार से अंतःकरण से क्षमायाचना करता हूं।
परम श्रद्धेय गुरुदेव को समर्पित रचना आपको अच्छी लगें तो फेसबुक व्हाट्सएप आदि ग्रुप्स में शेयर करें और सुविधा हो तो अपने क्षेत्रों में पत्रिकाओं में प्रकाशित कराकर जन-जन तक पहुंचाने का प्रयास करें। मेरा नाम और फोटो हटाकर भी कोई प्रकाशित करना चाहें तो मुझे कोई एतराज नहीं है। बस! गुरु गुण जन व्यापी बनें।
ऊं अर्हंम्।

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दिलीप गुप्ता

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