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कालजयी श्री तुलसी संकल्प सिद्धी की संक्षिप्त यात्रा..29 वें महाप्रयाण दिवस विशेष
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✍️रचनाकार ::
मोहनलाल भन्साली “कलाकार”
राजस्थान, लाडनूं की पावन धरा पर श्री झूमरमल जी खट्टेड़ कुल के घर आंगन में कार्तिक शुक्ला 2 वि. स.1971 को मातुश्री वन्दना जी की कुक्षि से नवजात शिशु ने जन्म लिया।
भैक्षव शासन के अष्टमाचार्य श्री कालुगणी ने मात्र 9 वर्षीय बालक तुलसी को पौष कृष्णा 5 वि. स.1982 को लाडनूं में *संयम रत्न* प्रदान किया। 22 वर्षीय युवा मनीषी ने गंगापुर में भाद्रपद शुक्ला 9 वि. स.1993 को नवमें आचार्य पद को सुशोभित किया। आचार्यकाल के पहले ही वर्ष में बीकानेर में सांप्रदायिक तनाव को सौहार्द में बदलने की घटना से महाराजा गंगासिंह जी आपकी अद्वितीय बौद्धिक एवं नेतृत्व क्षमताओं से अभिभूत हुए।
साधना के शिखर पुरुष आचार्य श्री तुलसी ने 1 मार्च 1949 सरदारशहर में अणुव्रत आंदोलन का शंखनाद किया। राष्ट्र के चरित्र निर्माण में अणुव्रत की अनुपम विचारक्रांति से भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद बाबू प्रसन्नचित्त हुए और उन्होंने प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को अणुव्रत से अवगत कराया। आपा-धापी के दौर में लेने वालों की कतार में राष्ट्र निर्माण के लिए अपनी धवल सेना के साथ नेहरू जी को कुछ देने पहुंचे आचार्य श्री तुलसी! नेहरू जी अत्यंत प्रभावित हुए और आचार्य श्री का अभिवादन किया और अणुव्रत की महत्ता को गहराई से समझा। मानवीय मूल्यों की प्रतिष्ठा में “अणुव्रत के चिराग” को पाकर पंडित नेहरू गद्-गद् हुए।
अनुशासन के मंत्रदाता श्रीमद् जयाचार्य प्रवर का “निर्वाण शताब्दी समारोह” दिल्ली के चांदनी चौक में अणुव्रत अनुशास्ता आचार्य श्री तुलसी के सान्निध्य में *”मौन जुलूस”* के रूप में आयोजित हुआ। जिसमें धवल वाहिनी और विशाल जनसमूह का समायोजन हुआ।
ढ़ुंढ़-ढुंढाला, मंजला कद, गौर वर्ण, श्वेत वस्त्र, मूंह पर पट्टी, युवा संत, माधुर्य वाणी, अप्रत्याशित आकर्षक व्यक्तित्व एवं सबको सम्मोहित करने वाला तेज आभामंडल और अहिंसा व अणुव्रत का प्रचारक जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के आचार्य श्री तुलसी का परिचय विश्व स्तर पर मीडिया में प्रकाशित हुआ और अहिंसा जगत में सत्य, अहिंसा, अणुव्रत और संयम की गूंज चहुंओर गूंजायमान हुई।
व्यक्तित्व निर्माण में अणुव्रत की विशालता को समझने हेतु आचार्य श्री तुलसी की सन्निधि में राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर के जिज्ञासु आए और तर्क संगत सागर में अणुव्रत की गहनता से आश्वस्त को हुए ।
*अणुव्रत वह प्रकाशपुंज है जो सार्वभौमिक अनैतिकता के अंधकारमय वातावरण को प्रकाशमय बनाने में सक्षम है।
*अणुव्रत आंदोलन का मुख्य उद्देश्य मानवीय मूल्यों के आधार पर अहिंसक समाज की संरचना करना।
*अणुव्रत का उद्धघोष “संयम: खलु जीवनम्!” अर्थात संयम ही जीवन है।
*समय प्रबंधन में “निज पर शासन: फिर अनुशासन!” का प्रेरणास्रोत उद्धघोष है।
युगपुरुष श्री तुलसी ने गांव, शहर, ढ़ाणी से संसद के गलियारे तक चरैवेति चरैवेति मंत्र को चरितार्थ करते हुए पूर्व से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण तक लगभग एक लाख किलोमीटर की पदयात्राओं में अणुव्रत, नैतिकता, सहिष्णुता, सद्भावना सौहार्द व व्यसन मुक्ति की अलख जगाई। आपके प्रेरणा पाथेय से लाभान्वित जन-जन अपनी बुराइयों को आपकी झोली में भेंट करके धन्य हुआ। संसदीय मंच पर हमारे जन-प्रतिनिधि सत्तापक्ष और प्रतिपक्ष के नये नाम से सम्मान सुचक पहचान पाकर कृतज्ञ हुआ।
दूरदृष्टा समाज सुधारक श्री तुलसी ने नौनिहालों के सर्वांगीण विकास में पुस्तकीय ज्ञान के साथ-साथ भावनात्मक शिक्षा पर बल दिया और शिक्षा जगत को जीवन विज्ञान का अनुपम *”अवदान”* दिया।
संगीत के जादूगर, कवि सम्राट, साहित्यकार, श्री तुलसी ने *”आगम का संपादन”* किया और हिन्दी, अंग्रेजी, संस्कृत, प्राकृत व राजस्थानी आदि भाषाओं में सत्य,अहिंसा व अणुव्रत आदि जीवन रुपांतरित आध्यात्मिक साहित्य का अविस्मरणीय खजाना साहित्य जगत को दिया।
ऊर्जावान युवा आचार्य श्री तुलसी की धर्मशासना में विकासशील यात्रा के ऐतिहासिक 25 वर्षों की सम्पन्नता पर गंगाशहर की तपोभूमि पर दिनांक 01.03.1962 को राष्ट्रपति डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के आतिथ्य में *”धवल समारोह”* का आयोजन किया गया। यह विशिष्ट वर्ष अणुव्रत की गौरव गाथाओं में गंगाशहर के इतिहास का अमिट आलेख बन गया।
निर्माण के नये क्षितिज और जीवन मू्ल्य संरक्षण के महानायक आचार्य श्री तुलसी को दिनांक 02.02.1971 को *”युगप्रधान आचार्य पद”* से अलंकृत किया गया।
उदयपुर दिनांक 12.02.1986 को राष्ट्रपति श्री ज्ञानी जैल सिंह जी के द्वारा *”भारत ज्योति”* अलंकरण दिया गया। दिनांक 31.10.1992 को दिल्ली में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री पी वी नरसिम्हा राव जी के द्वारा *”इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय एकता पुरस्कार”* दिया गया। दिनांक 14.06.1993 को जैन विश्व भारती, लाडनूं में *”वाक्पति डी लिट”* पुरस्कार से सम्मानित किया गया। दिनांक 29.07.1995 को जैन विश्व भारती, के प्रांगण लाडनूं में *”हकीम खां सूरी सम्मान”* से नवाजा गया। श्री तुलसी सर्जनकर्ता आचार्य थे। आपको दिए जाने वाला “सम्मान-पत्र” स्वयं अपने आपसे सम्मानित हो जाता था।
आचार्य श्री तुलसी के जीवन के छः दशक अनेक विशेषणों से अभिनन्दनीय बन गया। दिनांक 15.12.1974 को अणुव्रत भवन, नई दिल्ली में महामहिम राष्ट्रपति श्री फखरूद्दीन अली अहमद के आतिथ्य में *”षष्ठिपूर्ति समारोह”* मनाया गया। आपकी अनुशासना का कीर्तिमान 50 साल कालजयी बना। अमृत पुरुष के व्यक्तित्व और कर्तृत्व की अभिवन्दना में *”अमृत महोत्सव”* का भव्य आयोजन पांच चरणों में गंगापुर दिनांक 28.04.1985 को, आमेट दिनांक 22-24.09.1985 को, उदयपुर दिनांक 10-14.02.1988 को, राजसमन्द दिनांक 17-23.04.1986 को और लाडनूं दिनांक 12-18.09.1986 को आयोजित किया गया। कार्यक्रमों में महामहिम राष्ट्रपति श्रीमान ज्ञानी जैल सिंह जी, पूर्व प्रधानमंत्री श्री मोरारजी देसाई, पूर्व प्रधानमंत्री श्री गुलज़ारीलाल नन्दा, श्री शिवराज जी पाटिल, साहित्यकार श्री जैनेन्द्र जैन एवं सामाजिक और धार्मिक संस्थाओं के बौद्धिक व प्रबुद्ध वर्ग आदि विशाल जनसमूह की उपस्थिति में नैतिक क्रांति के संवाहक श्री तुलसी ने असांप्रदायिक धर्म पर प्रकाश डाला। “नया संकल्प और नया सामर्थ्य” के उन्नयन में संकल्प सिद्धी की यात्रा में विकासोन्मुख हुए।
मानवता के भविष्य दृष्टा ने राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राज्यपाल, मुख्यमंत्री, राजनीतिज्ञ, मंत्री, अर्थ शास्त्री और जनप्रतिनिधियों से नैतिक क्रांति का आह्वान किया। वर्तमानकालीन समस्याएं जैसे जातीयता, प्रांतीयता, अस्पृश्यता, साम्प्रदायिकता आदि मानसिक महत्वाकांक्षी दुर्बलताओं की ज्वलंत समस्याओं पर अणुव्रत के छोटे छोटे संकल्पों के द्वारा हृदय परिवर्तन कराना और अनेकांत दर्शन का विकल्प दिया। राष्ट्रीय स्तर पर ग़रीबी, महंगाई और भुखमरी के समाधान में अनुशासन और शम सम और श्रम का मंत्र प्रदान किया। आचार्य श्री तुलसी अध्यात्म परंपरा के सूत्रधार थे। मानवीय मूल्यों के संरक्षण में अविरल पदयात्राओं में दिगंबर जैनाचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज व बौद्धधर्म गुरु दलाई-लामा से आत्मीय मिलन हुआ। वृद्धा में महात्मा गांधी के महान् विचारक श्री विनोबा भावे जी से आध्यात्मिक वार्तालाप हुआ। सर्वोदय नेता श्री शिवाजी भावे, श्री जयप्रकाश जी नारायण व नोबेल पुरस्कार से सम्मानित मदर टेरेसा तथा सीमान्त गांधी खान अब्दुल गफ्फार खां और *विश्व हिन्दू धर्म सम्मेलन* में आदि शंकराचार्य जी, अजमेर की ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती दरगाह के दीवान साहब, आर्य समाज के संत, नाथ संप्रदाय के संत, संत श्री कृपालसिंह जी आदि हिन्दू ,मुस्लिम, सिख, ईसाई आदि धर्मावलंबी संतों, गुरुजनों व जैनाचार्यों, इतिहासकार , साहित्यकार, गायककार, पर्यावरण विद् एवं शिक्षाविद्, अर्थशास्त्री, पत्रकार आदि चिंतनशील वर्ग और गणमान्यजनों ने बदलते युग में अणुव्रत की प्रासंगिकता पर चिंतन मनन किया। जिसका सकारात्मक परिणाम मिला।
*शास्वत धर्म के पुजारी और सत्य अहिंसा के सारथी श्री तुलसी ने *”अशांत विश्व को शांति का संदेश दिया।”* यह संदेश महात्मा गांधी के पास पहुंचा। गांधीजी ने संदेश की गंभीरता को देखा और कहा ऐसे मार्मिक संदेश में देरी क्यों ?
अणुव्रत अनुशास्ता श्री तुलसी ने रुढ़िवादी परंपराओं में दहेज प्रथा, मृत्यु भोज, आंडबर आदि सामाजिक कुप्रथाओं पर कुठाराघात किया। घर की चारदीवारी में कैद अबला नारी का उत्थान किया और राजनगर में *”नया मोड़”* का अवदान दिया। जिसके फलस्वरूप आज शिक्षित और स्वाभिमानी नारी खुले आसमां में ऊंची उड़ान भरने को आतुर हैं।
स्वप्नदृष्टा पुरुषार्थी संत श्री तुलसी के सान्निध्य में सन् 1982 निर्वाणोत्सव पर महामहिम राष्ट्रपति श्री ज्ञानी जैल सिंह जी के कर कमलों द्वारा *”आचार्य श्री भिक्षु समाधी संस्थान”* सिरियारी का लोकार्पण हुआ।
श्रद्धेय आचार्य श्री तुलसी को सफलताओं के साथ-साथ अकल्पनीय विरोध का भी सामना करना पड़ा। किन्तु आपने “विरोध को भी विनोद माना!” प्रतिकूलताओं को अनूकूलता में बदल दिया।
*शांतिदूत युगप्रधान श्रद्धेय आचार्य श्री तुलसी ने पंजाब में धधकते अंगारों पर अहिंसा की बरसात कर सिख संत श्री हरचन्द सिंह लोंगेवाला, पंजाब के मुख्यमंत्री श्री सुरजीत सिंह बरनाला और तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी के साथ *”शांति समझौता”* कराया।
*कल्पना शक्ति के सम्राट, ज्योतिपुंज आचार्य श्री तुलसी के लिए आचार्य श्री भिक्षु हृदयहार थें तो आचार्य श्री कालुगणी कण्ठमणी थें। आचार्य काल के 58 वर्षों में अध्यात्म जगत को गगनचुंबी ऊंचाईयां दी और मानव को आलोकित आलोकपुंज दिया।*
इतिहास के परिवर्तन कार, लौ पुरुष आचार्य श्री तुलसी ने पदलोलुपता के युग में माघ शुक्ला 7 वि. स. 2050 को सुजानगढ़ में आचार्य पद का विसर्जन कर नये युग का शुभारंभ किया। दिनांक 05.02.1995 को देश की राजधानी दिल्ली में आयोजित *”आचार्य पदाभिषेक समारोह”* में आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी का आध्यात्मिक अभिषेक किया।
वात्सल्य मूर्ति, कुशल प्रशासनिक, शिल्पीकार आचार्य श्री तुलसी ने “महान् दार्शनिक महाप्रज्ञजी” का जीवन निर्माण किया। साध्वी समाज की सेवा और सुश्रुषा में लीन साध्वी श्री प्रमुखा जी को “महाश्रमणी पद” से अलंकृत किया। विनयवान मुनिश्री मुदित कुमार जी को “महाश्रमण” से अलंकृत कर तेरापंथ धर्मसंघ को “अध्यात्म का धूर्वतारा” दिया। समण व उपासक श्रेणी का सूत्रपात किया। पारमार्थिक शिक्षण संस्थान का निर्माण किया ।
*आचार्य श्री तुलसी ने अपने शासनकाल में लगभग 700 साधु साध्वियों और समण श्रेणी को दीक्षित करने का इतिहास रचकर पूर्ववर्ती आचार्यों की “संघीय संपदाओं” की श्रीवृद्धि में अद्वितीय काम किया।*
घर घर नैतिक संस्कारों को प्रस्फुटित करने के उद्देश्य से *”अणुव्रत परिवार”* की परिकल्पना दी। अर्जन व विसर्जन का बोधपाठ दिया। सेवा और संगठन के दायित्व में संस्थाओं का गठन किया। समारोह, महोत्सव जैसे अनेक संघीय आयोजनों का श्रीगणेश किया। सेवाओं में लीन सेवाभावी को अलंकरण देना प्रारंभ किया। संघीय समाचार बुलेटिन विज्ञप्ति, तेरापंथ टाईम्स आदि पत्र पत्रिकाओं का प्रकाशन शुरू किया।
*मानवता का मसीहा आचार्य श्री तुलसी द्वारा कल्पनातीत जैन विश्व भारती, लाडनूं “कामधेनु” के रूप में मानवीय मूल्यों के सरंक्षण में वरदान साबित हो रही है।
गण का भण्डार भरुंगा के संकल्प को सिद्ध करते हुए धर्मधुरंधर, तीर्थंकर के प्रतिनिधि गणाधिपती गुरुदेव श्री तुलसी तेरापंथ भवन, गंगाशहर में दिनांक 23.06.1997 को धर्मसंघ की सारणा वारणा करते हुए अकस्मात् काल के गर्भ में समा गए। महाप्रयाण यात्रा में राजस्थान के मुख्यमंत्री श्री भैरुसिंह शेखावत, दिल्ली के मुख्यमंत्री श्री मदन लाल खुराना आदि लाखों श्रद्धालु नम आंखों से अपने आराध्य को विदाई देने के लिए उमड़ पड़े। *छोटी काशी बीकानेर का उपनगर, गंगाशहर “तीर्थ स्थल” बन गया।*

Picture of दिलीप गुप्ता

दिलीप गुप्ता

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