*आलेख: © डॉ. राकेश वशिष्ठ, वरिष्ठ पत्रकार और संपादकीय लेखक*
*भारत* मैं हर वर्ष 14 अप्रैल को बाबा साहेब डा. भीमराव अंबेडकर की जयन्ती मनायी जाती है। भारतीय संविधान के प्रणेता और रचयिता डॉ. भीमराव अंबेडकर का सपना था कि भारत जाति-मुक्त से औद्योगिक राष्ट्र बने. सदैव लोकतांत्रिक बना रहे। लोग आम्बेडकर को एक दलित नेता के रूप में जानते है। जबकि उन्होंने बचपन से ही जाति प्रथा का खुलकर विरोध किया था। उन्होंने जातिवाद से मुक्त आर्थिक दृष्टि से सुद्ध भारत का सपना देखा था। मगर देश की गन्दी राजनीति ने उन्हें सर्वसमाज के नेता के बजाय दलित समाज का नेता के रूप में स्थापित कर दिया। अंबेडकर का एक और सपना भी था कि दलित धनवान बनें। वे हमेशा नौकरी मांगने वाले ही न बने रहें अपितु नौकरी देने वाले भी बनें। बाबा साहब का मानना था कि वर्गहीन समाज गढ़ने से पहले समाज को जाति विहीन करना होगा। आज महिलाओं को अधिकार दिलाने के लिए हमारे पास जो भी सवैधानिक सुरक्षा कवच, कानूनी प्रावधान और संस्थागत उपाय मौजूद हैं। इसका श्रेय किसी एक मनुष्य को जाता है ये हैं बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर। भारतीय संदर्भ में जब भी समाज में व्यात जाति, वर्ग और लिंग के स्तर पर प्यार असमानताओं और उनमें सुधार के मुद्दों पर चिंतन हो तो डॉ. अंबेडकर के विचारों और दृष्टिकोण को शामिल किए बिना बात पूरी नहीं हो सकती। हर वर्ष 14 अप्रैल को बाबा साहेब डा. भीमराव अंबेडकर की जयन्ती मनायी जाती है। बाबा साहेब की जयन्ती पर लोगों को संकल्प लेना चाहिये कि हम सब सच्चे मन से उनके बताये मार्ग का अनुशरण करेंगे। उनके बनाये संविधान का फलन करेंगे। ऐसा कोई काम नहीं करेगें जिससे देश के किसी कानून का उमर्थन होता हो। चूंकि बाबा साहेब हमेशा जाति प्रथा. ऊंच नीच की बातों के विरोधी थे। इसलिये उनकी जयन्ती पर उनको श्रृद्धांजलि देने का सबसे अच्छा तरीका है उनके सिद्धांतो को अपने जीवन में अपनाये।
संविधान प्रणेता बाबा साहेब डॉ भीमराव अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्यप्रदेश के मत में एक गरीब परिवार में हुआ था। वो भीमराव रामजी मालोजी सकपाल और भीमाबाई की 14 वी सन्तान थे। उनका परिवार मराठी था जी महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले में स्थित अम्बावडे नगर से सम्बंधित था। उनके बचपन का नाम रामजी सकपाल था। वे हिंदू महार जाति के थे जो अछूत कहे जाते थे। उनकी जाति के साथ सामाजिक और आर्थिक रूप से गहरा भेदभाव किया जाता था। एक अस्पृश्य परिवार में जन्म लेने के कारण उनको बचपन अभावों में बिताना पड़ा था। भारतीय संदर्भ में देखा जाए तो अंबेडकर संभवत: पहले अध्येता रहे है। जिन्होंने भारतीय जातीय संरचना में महिलाओं की स्थिति को समझाने की कोशिश की थी। उनके संपूर्ण विचार मंथन के दृष्टिकोण में सबसे महत्वपूर्ण मथन का हिस्सा महिला सशक्तिकरण था। अंबेडकर यह बात समझाते थे कि स्त्रियों की स्थिति सिर्फ ऊपर से उपदेश देकर नहीं सुधरने वाली, उसके लिए कानूनी व्यवस्था करनी होगी। हिंदू कोड बिल महिला सशक्तिकरण का असली आविष्कार है। इसी कारण अंबेडकर हिंदू कोड बिल लेकर आये थे। हिंदू कोड बिल भारतीय महिलाओं के लिए सभी मर्ज की दवा थी। पर अफसोस यह बिल संसद में पारित नहीं हो पाया और इसी कारण अंबेडकर ने कानून मंत्री पद का इस्तीफा दे दिया था। स्त्री सरोकारों के प्रति डॉ भीमराव अंबेडकर का समर्पण किसी जुनून से कम नहीं था। डा. भीमराव अंबेडकर का मानना था कि भारतीय महिलाओं के पिछड़ेपन की मूल वजह भेदभाव पूर्ण समाज व्यवस्था और शिक्षा का अभाव है। शिक्षा में समानता के संदर्भ में अंबेडकर के विचार स्पष्ट है। उनका मानना था कि यदि हम लड़कों के साथ-साथ लड़कियों की शिक्षा पर ध्यान देने लग जाए तो प्रगति कर सकते है। शिक्षा पर किसी एक ही वर्ग का अधिकार नहीं है। समाज के प्रत्येक वर्ग को शिक्षा का समान अधिकार है। नारी शिक्षा पुरुष शिक्षा से भी अधिक महत्वपूर्ण है। चूंकि पूरी पारिवारिक व्यवस्था की धुरी नारी है उसे नकारा नहीं जा सकता है। अंबेडकर के प्रसिद्ध मूलमंत्र की शुरुआत ही ‘शिक्षित करो’ से होती है। इस मूलमंत्र की पालना से आज कितनी ही महिलाएं शिक्षित होकर आत्मनिर्भर बन रही है।
बाबा साहेब अंबेडकर कुल 64 विषयों में मास्टर थे। वे हिन्दी, पाली, संस्कृत, अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मन, मराठी, पर्शियन और गुजराती जैसे 9 भाषाओं के जानकार थे। इसके अलावा उन्होंने लगभग 21 साल तक विश्व के सभी धमों की तुलनात्मक रूप से पढ़ाई की थी। डॉ भीमराव अंबेडकर अकेले एकमात्र ऐसे भारतीय है जिनकी प्रतिमा लंदन के संग्राहलय में कार्ल माक्र्स के साथ लगाई गई है। इतना ही नहीं उन्हें देश विदेश में कई प्रतिष्ठित सम्मान भी मिले है। भीमराव अंबेडकर के पास कुल 32 डिग्री थी। डॉ भीमराव अंबेडकर के निजी पुस्तकालय राजगृह में 50 हजार से भी अधिक किताबें थी। यह विश्व का सबसे बढ़ा निजी पुस्तकालय था। जब 15 अगस्त 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद कांग्रेस के नेतृत्व वाली नई सरकार बनी तो उसमें डा.अंबेडकर को देश का पहले कानून मंत्री नियुक्त किया गया। 29 अगस्त 1947 को बाबा साहेब डॉ अंबेडकर को स्वतंत्र भारत के नए संविधान की रचना कि लिए बनी संविधान मसौदा समिति के अध्यक्ष नियुक्त किया गया। 26 नवम्बर 1949 को संविधान सभा ने उनके नेतृत्व में बने संविधान को अपना लिया। अपने काम को पूरा करने के बाद बोलते हुए डा. अंबेडकर ने कहा मैं महसूस करता हूं कि भारत का संविधान साध्य है, लचीला है पर साथ ही यह इतना मजबूत भी है कि देश को शांति और युद्ध दोनों समय जोड़ कर रखने में सक्षम होगा। मैं कह सकता हूं कि अगर कभी कुछ गलत हुआ तो इसका कारण यह नहीं होगा कि हमारा संविधान खराब था बल्कि इसका उपयोग करने वाला मनुष्य ही गलत था।
डॉ अंबेडकर ने 1952 में निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में लोक सभा का चुनाव लड़ा किंतु हार गये। मार्च 1952 में उन्हें राज्य सभा के लिए मनोनित किया गया। अपनी मृत्यु तक वो उच्च सदन के सदस्य रहे। बाबा साहेब ने 14 अक्टूबर 1956 को नागपुर में अपने लाखों समर्थकों के साथ एक सार्वजनिक समारोह में एक बौद्ध भिक्षु से बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया राजनीतिक मुद्दों से परेशान अंबेडकर का स्वास्थ्य बिगड़ता चला गया। 6 दिसम्बर 1956 को अंबेडकर की नींद में ही दिल्ली स्थित उनके घर में मृत्यु हो गई। 7 दिसम्बर को बम्बई में चौपाटी समुद्र तट पर बौद्ध शैली में उनका अंतिम संस्कार किया गया जिसमें उनके हजारों समर्थकों, कार्यकर्ताओं और प्रशंसकों ने भाग लिया। 1990 में बाबासाहेब डा. अंबेडकर को भारत रत्न से सम्मानित किया गया। सरकारों की उपेक्षा के चलते बाबा साहेब को भारत रत्न सम्मान बहुत देर से प्रदान किया गया। जिसके वे सबसे पहले हकदार थे। अंबेडकर के दिल्ली स्थित 26 अलीपुर रोड के उस घर में एक स्मारक स्थापित किया गया है जहां वो सांसद के रूप में रहते थे। देश भर में अंबेडकर जयन्ती पर सार्वजनिक अवकाश रखा जाता है। अनेक सार्वजनिक संस्थानों का नाम उनके सम्मान में उनके नाम पर रखा गया है। अंबेडकर का एक बड़ा चित्र भारतीय संसद भवन में लगाया गया है। हर वर्ष 14 अप्रैल व 6 दिसम्बर को मुम्बई स्थित उनके स्मारक पर हर साल काफी लोग उन्हें अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए आते हैं। बाबा साहेब की जयन्ती पर लोगों को संकल्प लेना चाहिये कि हम सब सच्चे मन से उनके बताये मार्ग का अनुशरण करेगे। उनके बनाये संविधान का पालन करेगे। ऐसा कोई काम नहीं करेगे जिससे देश के किसी कानून का उल्लघन होता हो। चूंकि बाबा साहेब हमेशा जाति प्रथा, ऊंच नीच, छुआ छूत की बातों के विरोधी थे। इसलिये उनकी जयन्ती पर उनको श्रृद्धांजलि देने का सबसे अच्छा तरीका है उनके सिद्धांतो को अपने जीवन में अपनाये।
*आलेख: © डॉ. राकेश वशिष्ठ, वरिष्ठ पत्रकार एवं संपादकीय लेखक*